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मुक़द्दस क़ौम के लिए हिदायात
रब ने मूसा से कहा, “इसराईलियों की पूरी जमात को बताना कि मुक़द्दस रहो, क्योंकि मैं रब तुम्हारा ख़ुदा क़ुद्दूस हूँ।
तुममें से हर एक अपने माँ-बाप की इज़्ज़त करे। हफ़ते के दिन काम न करना। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ। न बुतों की तरफ़ रुजू करना, न अपने लिए देवता ढालना। मैं ही रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
जब तुम रब को सलामती की क़ुरबानी पेश करते हो तो उसे यों चढ़ाओ कि तुम मंज़ूर हो जाओ। उसका गोश्त उसी दिन या अगले दिन खाया जाए। जो भी तीसरे दिन तक बच जाता है उसे जलाना है। अगर कोई उसे तीसरे दिन खाए तो उसे इल्म होना चाहिए कि यह क़ुरबानी नापाक है और रब को पसंद नहीं है। ऐसे शख़्स को अपने क़ुसूर की सज़ा उठानी पड़ेगी, क्योंकि उसने उस चीज़ की मुक़द्दस हालत ख़त्म की है जो रब के लिए मख़सूस की गई थी। उसे उस की क़ौम में से मिटाया जाए।
कटाई के वक़्त अपनी फ़सल पूरे तौर पर न काटना बल्कि खेत के किनारों पर कुछ छोड़ देना। इस तरह जो कुछ कटाई करते वक़्त खेत में बच जाए उसे छोड़ना। 10 अंगूर के बाग़ों में भी जो कुछ अंगूर तोड़ते वक़्त बच जाए उसे छोड़ देना। जो अंगूर ज़मीन पर गिर जाएँ उन्हें उठाकर न ले जाना। उन्हें ग़रीबों और परदेसियों के लिए छोड़ देना। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
11 चोरी न करना, झूट न बोलना, एक दूसरे को धोका न देना।
12 मेरे नाम की क़सम खाकर धोका न देना, वरना तुम मेरे नाम को दाग़ लगाओगे। मैं रब हूँ।
13 एक दूसरे को न दबाना और न लूटना। किसी की मज़दूरी उसी दिन की शाम तक दे देना और उसे अगली सुबह तक रोके न रखना।
14 बहरे को न कोसना, न अंधे के रास्ते में कोई चीज़ रखना जिससे वह ठोकर खाए। इसमें भी अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानना। मैं रब हूँ।
15 अदालत में किसी की हक़तलफ़ी न करना। फ़ैसला करते वक़्त किसी की भी जानिबदारी न करना, चाहे वह ग़रीब या असरो-रसूख़वाला हो। इनसाफ़ से अपने पड़ोसी की अदालत कर।
16 अपनी क़ौम में इधर उधर फिरते हुए किसी पर बुहतान न लगाना। कोई भी ऐसा काम न करना जिससे किसी की जान ख़तरे में पड़ जाए। मैं रब हूँ।
17 दिल में अपने भाई से नफ़रत न करना। अगर किसी की सरज़निश करनी है तो रूबरू करना, वरना तू उसके सबब से क़ुसूरवार ठहरेगा।
18 इंतक़ाम न लेना। अपनी क़ौम के किसी शख़्स पर देर तक तेरा ग़ुस्सा न रहे बल्कि अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आपसे रखता है। मैं रब हूँ।
19 मेरी हिदायात पर अमल करो। दो मुख़्तलिफ़ क़िस्म के जानवरों को मिलाप न करने देना। अपने खेत में दो क़िस्म के बीज न बोना। ऐसा कपड़ा न पहनना जो दो मुख़्तलिफ़ क़िस्म के धागों का बुना हुआ हो।
20 अगर कोई आदमी किसी लौंडी से जिसकी मँगनी किसी और से हो चुकी हो हमबिसतर हो जाए और लौंडी को अब तक न पैसों से न वैसे ही आज़ाद किया गया हो तो मुनासिब सज़ा दी जाए। लेकिन उन्हें सज़ाए-मौत न दी जाए, क्योंकि उसे अब तक आज़ाद नहीं किया गया। 21 क़ुसूरवार आदमी मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर एक मेंढा ले आए ताकि वह रब को क़ुसूर की क़ुरबानी के तौर पर पेश किया जाए। 22 इमाम इस क़ुरबानी से रब के सामने उसके गुनाह का कफ़्फ़ारा दे। यों उसका गुनाह मुआफ़ किया जाएगा। 23 जब मुल्के-कनान में दाख़िल होने के बाद तुम फलदार दरख़्त लगाओगे तो पहले तीन साल उनका फल न खाना बल्कि उसे ममनू * समझना। 24 चौथे साल उनका तमाम फल ख़ुशी के मुक़द्दस नज़राने के तौर पर रब के लिए मख़सूस किया जाए। 25 पाँचवें साल तुम उनका फल खा सकते हो। यों तुम्हारी फ़सल बढ़ाई जाएगी। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
26 ऐसा गोश्त न खाना जिसमें ख़ून हो। फ़ाल या शुगून न निकालना।
27 अपने सर के बाल गोल शक्ल में न कटवाना, न अपनी दाढ़ी को तराशना। 28 अपने आपको मुरदों के सबब से काटकर ज़ख़मी न करना, न अपनी जिल्द पर नुक़ूश गुदवाना। मैं रब हूँ।
29 अपनी बेटी को कसबी न बनाना, वरना उस की मुक़द्दस हालत जाती रहेगी और मुल्क ज़िनाकारी के बाइस हरामकारी से भर जाएगा।
30 हफ़ते के दिन आराम करना और मेरे मक़दिस का एहतराम करना। मैं रब हूँ।
31 ऐसे लोगों के पास न जाना जो मुरदों से राबिता करते हैं, न ग़ैबदानों की तरफ़ रुजू करना, वरना तुम उनसे नापाक हो जाओगे। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
32 बूढ़े लोगों के सामने उठकर खड़ा हो जाना, बुज़ुर्गों की इज़्ज़त करना और अपने ख़ुदा का एहतराम करना। मैं रब हूँ।
33 जो परदेसी तुम्हारे मुल्क में तुम्हारे दरमियान रहता है उसे न दबाना। 34 उसके साथ ऐसा सुलूक कर जैसा अपने हमवतनों के साथ करता है। जिस तरह तू अपने आपसे मुहब्बत रखता है उसी तरह उससे भी मुहब्बत रखना। याद रहे कि तुम ख़ुद मिसर में परदेसी थे। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ।
35 नाइनसाफ़ी न करना। न अदालत में, न लंबाई नापते वक़्त, न तोलते वक़्त और न किसी चीज़ की मिक़दार नापते वक़्त। 36 सहीह तराज़ू, सहीह बाट और सहीह पैमाना इस्तेमाल करना। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ जो तुम्हें मिसर से निकाल लाया हूँ।
37 मेरी तमाम हिदायात और तमाम अहकाम मानो और उन पर अमल करो। मैं रब हूँ।”
* 19:23 लफ़्ज़ी तरजुमा : नामख़तून।