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इसराईली अपने गुनाहों का इक़रार करते हैं
उसी महीने के 24वें दिन * इसराईली रोज़ा रखने के लिए जमा हुए। टाट के लिबास पहने हुए और सर पर ख़ाक डालकर वह यरूशलम आए। अब वह तमाम ग़ैरयहूदियों से अलग होकर उन गुनाहों का इक़रार करने के लिए हाज़िर हुए जो उनसे और उनके बापदादा से सरज़द हुए थे। तीन घंटे वह खड़े रहे, और उस दौरान रब उनके ख़ुदा की शरीअत की तिलावत की गई। फिर वह रब अपने ख़ुदा के सामने मुँह के बल झुककर मज़ीद तीन घंटे अपने गुनाहों का इक़रार करते रहे।
यशुअ, बानी, क़दमियेल, सबनियाह, बुन्नी, सरिबियाह, बानी और कनानी जो लावी थे एक चबूतरे पर खड़े हुए और बुलंद आवाज़ से रब अपने ख़ुदा से दुआ की।
फिर यशुअ, क़दमियेल, बानी, हसब्नियाह, सरिबियाह, हूदियाह, सबनियाह और फ़तहियाह जो लावी थे बोल उठे, “खड़े होकर रब अपने ख़ुदा की जो अज़ल से अबद तक है सताइश करें!”
उन्होंने दुआ की,
“तेरे जलाली नाम की तमजीद हो, जो हर मुबारकबादी और तारीफ़ से कहीं बढ़कर है। ऐ रब, तू ही वाहिद ख़ुदा है! तूने आसमान को एक सिरे से दूसरे सिरे तक उसके लशकर समेत ख़लक़ किया। ज़मीन और जो कुछ उस पर है, समुंदर और जो कुछ उसमें है सब कुछ तू ही ने बनाया है। तूने सबको ज़िंदगी बख़्शी है, और आसमानी लशकर तुझे सिजदा करता है।
 
तू ही रब और वह ख़ुदा है जिसने अब्राम को चुन लिया और कसदियों के शहर ऊर से बाहर लाकर इब्राहीम का नाम रखा। तूने उसका दिल वफ़ादार पाया और उससे अहद बाँधकर वादा किया, ‘मैं तेरी औलाद को कनानियों, हित्तियों, अमोरियों, फ़रिज़्ज़ियों, यबूसियों और जिरजासियों का मुल्क अता करूँगा।’ और तू अपने वादे पर पूरा उतरा, क्योंकि तू क़ाबिले-एतमाद और आदिल है।
 
तूने हमारे बापदादा के मिसर में बुरे हाल पर ध्यान दिया, और बहरे-क़ुलज़ुम के किनारे पर मदद के लिए उनकी चीख़ें सुनीं। 10 तूने इलाही निशानों और मोजिज़ों से फ़िरौन, उसके अफ़सरों और उसके मुल्क की क़ौम को सज़ा दी, क्योंकि तू जानता था कि मिसरी हमारे बापदादा से कैसा गुस्ताखाना सुलूक करते रहे हैं। यों तेरा नाम मशहूर हुआ और आज तक याद रहा है। 11 क़ौम के देखते देखते तूने समुंदर को दो हिस्सों में तक़सीम कर दिया, और वह ख़ुश्क ज़मीन पर चलकर उसमें से गुज़र सके। लेकिन उनका ताक़्क़ुब करनेवालों को तूने मुतलातिम पानी में फेंक दिया, और वह पत्थरों की तरह समुंदर की गहराइयों में डूब गए।
 
12 दिन के वक़्त तूने बादल के सतून से और रात के वक़्त आग के सतून से अपनी क़ौम की राहनुमाई की। यों वह रास्ता अंधेरे में भी रौशन रहा जिस पर उन्हें चलना था। 13 तू कोहे-सीना पर उतर आया और आसमान से उनसे हमकलाम हुआ। तूने उन्हें साफ़ हिदायात और क़ाबिले-एतमाद अहकाम दिए, ऐसे क़वायद जो अच्छे हैं। 14 तूने उन्हें सबत के दिन के बारे में आगाह किया, उस दिन के बारे में जो तेरे लिए मख़सूसो-मुक़द्दस है। अपने ख़ादिम मूसा की मारिफ़त तूने उन्हें अहकाम और हिदायात दीं। 15 जब वह भूके थे तो तूने उन्हें आसमान से रोटी खिलाई, और जब प्यासे थे तो तूने उन्हें चटान से पानी पिलाया। तूने हुक्म दिया, ‘जाओ, मुल्क में दाख़िल होकर उस पर क़ब्ज़ा कर लो, क्योंकि मैंने हाथ उठाकर क़सम खाई है कि तुम्हें यह मुल्क दूँगा।’
 
16 अफ़सोस, हमारे बापदादा मग़रूर और ज़िद्दी हो गए। वह तेरे अहकाम के ताबे न रहे। 17 उन्होंने तेरी सुनने से इनकार किया और वह मोजिज़ात याद न रखे जो तूने उनके दरमियान किए थे। वह यहाँ तक अड़ गए कि उन्होंने एक राहनुमा को मुक़र्रर किया जो उन्हें मिसर की ग़ुलामी में वापस ले जाए। लेकिन तू मुआफ़ करनेवाला ख़ुदा है जो मेहरबान और रहीम, तहम्मुल और शफ़क़त से भरपूर है। तूने उन्हें तर्क न किया, 18 उस वक़्त भी नहीं जब उन्होंने अपने लिए सोने का बछड़ा ढालकर कहा, ‘यह तेरा ख़ुदा है जो तुझे मिसर से निकाल लाया।’ इस क़िस्म का संजीदा कुफ़र वह बकते रहे। 19 लेकिन तू बहुत रहमदिल है, इसलिए तूने उन्हें रेगिस्तान में न छोड़ा। दिन के वक़्त बादल का सतून उनकी राहनुमाई करता रहा, और रात के वक़्त आग का सतून वह रास्ता रौशन करता रहा जिस पर उन्हें चलना था। 20 न सिर्फ़ यह बल्कि तूने उन्हें अपना नेक रूह अता किया जो उन्हें तालीम दे। जब उन्हें भूक और प्यास थी तो तू उन्हें मन खिलाने और पानी पिलाने से बाज़ न आया। 21 चालीस साल वह रेगिस्तान में फिरते रहे, और उस पूरे अरसे में तू उनकी ज़रूरियात को पूरा करता रहा। उन्हें कोई भी कमी नहीं थी। न उनके कपड़े घिसकर फटे और न उनके पाँव सूजे।
 
22 तूने ममालिक और क़ौमें उनके हवाले कर दीं, मुख़्तलिफ़ इलाक़े यके बाद दीगरे उनके क़ब्ज़े में आए। यों वह सीहोन बादशाह के मुल्क हसबोन और ओज बादशाह के मुल्क बसन पर फ़तह पा सके। 23 उनकी औलाद तेरी मरज़ी से आसमान पर के सितारों जैसी बेशुमार हुई, और तू उन्हें उस मुल्क में लाया जिसका वादा तूने उनके बापदादा से किया था। 24 वह मुल्क में दाख़िल होकर उसके मालिक बन गए। तूने कनान के बाशिंदों को उनके आगे आगे ज़ेर कर दिया। मुल्क के बादशाह और क़ौमें उनके क़ब्ज़े में आ गईं, और वह अपनी मरज़ी के मुताबिक़ उनसे निपट सके। 25 क़िलाबंद शहर और ज़रख़ेज़ ज़मीनें तेरी क़ौम के क़ाबू में आ गईं, नीज़ हर क़िस्म की अच्छी चीज़ों से भरे घर, तैयारशुदा हौज़, अंगूर के बाग़ और कसरत के ज़ैतून और दीगर फलदार दरख़्त। वह जी भरकर खाना खाकर मोटे हो गए और तेरी बरकतों से लुत्फ़अंदोज़ होते रहे।
 
26 इसके बावुजूद वह ताबे न रहे बल्कि सरकश हुए। उन्होंने अपना मुँह तेरी शरीअत से फेर लिया। और जब तेरे नबी उन्हें समझा समझाकर तेरे पास वापस लाना चाहते थे तो उन्होंने बड़े कुफ़र बककर उन्हें क़त्ल कर दिया। 27 यह देखकर तूने उन्हें उनके दुश्मनों के हवाले कर दिया जो उन्हें तंग करते रहे। जब वह मुसीबत में फँस गए तो वह चीख़ें मार मारकर तुझसे फ़रियाद करने लगे। और तूने आसमान पर से उनकी सुनी। बड़ा तरस खाकर तूने उनके पास ऐसे लोगों को भेज दिया जिन्होंने उन्हें दुश्मनों के हाथ से छुड़ाया। 28 लेकिन ज्योंही इसराईलियों को सुकून मिलता वह दुबारा ऐसी हरकतें करने लगते जो तुझे नापसंद थीं। नतीजे में तू उन्हें दुबारा उनके दुश्मनों के हाथ में छोड़ देता। जब वह उनकी हुकूमत के तहत पिसने लगते तो वह एक बार फिर चिल्ला चिल्लाकर तुझसे इलतमास करने लगते। इस बार भी तू आसमान पर से उनकी सुनता। हाँ, तू इतना रहमदिल है कि तू उन्हें बार बार छुटकारा देता रहा! 29 तू उन्हें समझाता रहा ताकि वह दुबारा तेरी शरीअत की तरफ़ रुजू करें, लेकिन वह मग़रूर थे और तेरे अहकाम के ताबे न हुए। उन्होंने तेरी हिदायात की ख़िलाफ़वरज़ी की, हालाँकि इन्हीं पर चलने से इनसान को ज़िंदगी हासिल होती है। लेकिन उन्होंने परवा न की बल्कि अपना मुँह तुझसे फेरकर अड़ गए और सुनने के लिए तैयार न हुए।
 
30 उनकी हरकतों के बावुजूद तू बहुत सालों तक सब्र करता रहा। तेरा रूह उन्हें नबियों के ज़रीए समझाता रहा, लेकिन उन्होंने ध्यान न दिया। तब तूने उन्हें ग़ैरक़ौमों के हवाले कर दिया। 31 ताहम तेरा रहम से भरा दिल उन्हें तर्क करके तबाह नहीं करना चाहता था। तू कितना मेहरबान और रहीम ख़ुदा है!
 
32 ऐ हमारे ख़ुदा, ऐ अज़ीम, क़वी और महीब ख़ुदा जो अपना अहद और अपनी शफ़क़त क़ायम रखता है, इस वक़्त हमारी मुसीबत पर ध्यान दे और उसे कम न समझ! क्योंकि हमारे बादशाह, बुज़ुर्ग, इमाम और नबी बल्कि हमारे बापदादा और पूरी क़ौम असूरी बादशाहों के पहले हमलों से लेकर आज तक सख़्त मुसीबत बरदाश्त करते रहे हैं। 33 हक़ीक़त तो यह है कि जो भी मुसीबत हम पर आई है उसमें तू रास्त साबित हुआ है। तू वफ़ादार रहा है, गो हम क़ुसूरवार ठहरे हैं। 34 हमारे बादशाह और बुज़ुर्ग, हमारे इमाम और बापदादा, उन सबने तेरी शरीअत की पैरवी न की। जो अहकाम और तंबीह तूने उन्हें दी उस पर उन्होंने ध्यान ही न दिया। 35 तूने उन्हें उनकी अपनी बादशाही, कसरत की अच्छी चीज़ों और एक वसी और ज़रख़ेज़ मुल्क से नवाज़ा था। तो भी वह तेरी ख़िदमत करने के लिए तैयार न थे और अपनी ग़लत राहों से बाज़ न आए।
 
36 इसका अंजाम यह हुआ है कि आज हम उस मुल्क में ग़ुलाम हैं जो तूने हमारे बापदादा को अता किया था ताकि वह उस की पैदावार और दौलत से लुत्फ़अंदोज़ हो जाएँ। 37 मुल्क की वाफ़िर पैदावार उन बादशाहों तक पहुँचती है जिन्हें तूने हमारे गुनाहों की वजह से हम पर मुक़र्रर किया है। अब वही हम पर और हमारे मवेशियों पर हुकूमत करते हैं। उन्हीं की मरज़ी चलती है। चुनाँचे हम बड़ी मुसीबत में फँसे हैं।
क़ौम का अहदनामा
38 यह तमाम बातें मद्दे-नज़र रखकर हम अहद बाँधकर उसे क़लमबंद कर रहे हैं। हमारे बुज़ुर्ग, लावी और इमाम दस्तख़त करके अहदनामे पर मुहर लगा रहे हैं।”
* 9:1 31 अक्तूबर।