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इसराईल के सफ़र के मरहले
ज़ैल में उन जगहों के नाम हैं जहाँ जहाँ इसराईली क़बीले अपने दस्तों के मुताबिक़ मूसा और हारून की राहनुमाई में मिसर से निकलकर ख़ैमाज़न हुए थे। रब के हुक्म पर मूसा ने हर जगह का नाम क़लमबंद किया जहाँ उन्होंने अपने ख़ैमे लगाए थे। उन जगहों के नाम यह हैं :
पहले महीने के पंद्रहवें दिन इसराईली रामसीस से रवाना हुए। यानी फ़सह के दिन के बाद के दिन वह बड़े इख़्तियार के साथ तमाम मिसरियों के देखते देखते चले गए। मिसरी उस वक़्त अपने पहलौठों को दफ़न कर रहे थे, क्योंकि रब ने पहलौठों को मारकर उनके देवताओं की अदालत की थी।
रामसीस से इसराईली सुक्कात पहुँच गए जहाँ उन्होंने पहली मरतबा अपने डेरे लगाए। वहाँ से वह एताम पहुँचे जो रेगिस्तान के किनारे पर वाक़े है। एताम से वह वापस मुड़कर फ़ी-हख़ीरोत की तरफ़ बढ़े जो बाल-सफ़ोन के मशरिक़ में है। वह मिजदाल के क़रीब ख़ैमाज़न हुए। फिर वह फ़ी-हख़ीरोत से कूच करके समुंदर में से गुज़र गए। इसके बाद वह तीन दिन एताम के रेगिस्तान में सफ़र करते करते मारा पहुँच गए और वहाँ अपने ख़ैमे लगाए। मारा से वह एलीम चले गए जहाँ 12 चश्मे और खजूर के 70 दरख़्त थे। वहाँ ठहरने के बाद 10 वह बहरे-क़ुलज़ुम के साहिल पर ख़ैमाज़न हुए, 11 फिर दश्ते-सीन में पहुँच गए।
12 उनके अगले मरहले यह थे : दुफ़क़ा, 13-37 अलूस, रफ़ीदीम जहाँ पीने का पानी दस्तयाब न था, दश्ते-सीना, क़ब्रोत-हत्तावा, हसीरात, रितमा, रिम्मोन-फ़ारस, लिबना, रिस्सा, क़हीलाता, साफ़र पहाड़, हरादा, मक़हीलोत, तहत, तारह, मितक़ा, हशमूना, मौसीरोत, बनी-याक़ान, होर-हज्जिदजाद, युतबाता, अबरूना, अस्यून-जाबर, दश्ते-सीन में वाक़े क़ादिस और होर पहाड़ जो अदोम की सरहद पर वाक़े है।
38 वहाँ रब ने हारून इमाम को हुक्म दिया कि वह होर पहाड़ पर चढ़ जाए। वहीं वह पाँचवें माह के पहले दिन फ़ौत हुआ। इसराईलियों को मिसर से निकले 40 साल गुज़र चुके थे। 39 उस वक़्त हारून 123 साल का था।
40 उन दिनों में अराद के कनानी बादशाह ने सुना कि इसराईली मेरे मुल्क की तरफ़ बढ़ रहे हैं। वह कनान के जुनूब में हुकूमत करता था।
41-47 होर पहाड़ से रवाना होकर इसराईली ज़ैल की जगहों पर ठहरे : ज़लमूना, फ़ूनोन, ओबोत, ऐये-अबारीम जो मोआब के इलाक़े में था, दीबोन-जद, अलमून-दिबलातायम और नबू के क़रीब वाक़े अबारीम का पहाड़ी इलाक़ा। 48 वहाँ से उन्होंने यरदन की वादी में उतरकर मोआब के मैदानी इलाक़े में अपने डेरे लगाए। अब वह दरियाए-यरदन के मशरिक़ी किनारे पर यरीहू शहर के सामने थे। 49 उनके ख़ैमे बैत-यसीमोत से लेकर अबील-शित्तीम तक लगे थे।
तमाम कनानी बाशिंदों को निकालने का हुक्म
50 वहाँ रब ने मूसा से कहा, 51 “इसराईलियों को बताना कि जब तुम दरियाए-यरदन को पार करके मुल्के-कनान में दाख़िल होगे 52 तो लाज़िम है कि तुम तमाम बाशिंदों को निकाल दो। उनके तराशे और ढाले हुए बुतों को तोड़ डालो और उनकी ऊँची जगहों के मंदिरों को तबाह करो। 53 मुल्क पर क़ब्ज़ा करके उसमें आबाद हो जाओ, क्योंकि मैंने यह मुल्क तुम्हें दे दिया है। यह मेरी तरफ़ से तुम्हारी मौरूसी मिलकियत है। 54 मुल्क को मुख़्तलिफ़ क़बीलों और ख़ानदानों में क़ुरा डालकर तक़सीम करना। हर ख़ानदान के अफ़राद की तादाद का लिहाज़ रखना। बड़े ख़ानदान को निसबतन ज़्यादा ज़मीन देना और छोटे ख़ानदान को निसबतन कम ज़मीन। 55 लेकिन अगर तुम मुल्क के बाशिंदों को नहीं निकालोगे तो बचे हुए तुम्हारी आँखों में ख़ार और तुम्हारे पहलुओं में काँटे बनकर तुम्हें उस मुल्क में तंग करेंगे जिसमें तुम आबाद होगे। 56 फिर मैं तुम्हारे साथ वह कुछ करूँगा जो उनके साथ करना चाहता हूँ।”