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ज़मानत देने, काहिली और झूट से ख़बरदार
मेरे बेटे, क्या तू अपने पड़ोसी का ज़ामिन बना है? क्या तूने हाथ मिलाकर वादा किया है कि मैं किसी दूसरे का ज़िम्मादार ठहरूँगा? क्या तू अपने वादे से बँधा हुआ, अपने मुँह के अलफ़ाज़ से फँसा हुआ है? ऐसा करने से तू अपने पड़ोसी के हाथ में आ गया है, इसलिए अपनी जान को छुड़ाने के लिए उसके सामने औंधे मुँह होकर उसे अपनी मिन्नत-समाजत से तंग कर। अपनी आँखों को सोने न दे, अपने पपोटों को ऊँघने न दे जब तक तू इस ज़िम्मादारी से फ़ारिग़ न हो जाए। जिस तरह ग़ज़ाल शिकारी के हाथ से और परिंदा चिड़ीमार के हाथ से छूट जाता है उसी तरह सिर-तोड़ कोशिश कर ताकि तेरी जान छूट जाए।
ऐ काहिल, चियूँटी के पास जाकर उस की राहों पर ग़ौर कर! उसके नमूने से हिकमत सीख ले। उस पर न सरदार, न अफ़सर या हुक्मरान मुक़र्रर है, तो भी वह गरमियों में सर्दियों के लिए खाने का ज़ख़ीरा कर रखती, फ़सल के दिनों में ख़ूब ख़ुराक इकट्ठी करती है। ऐ काहिल, तू मज़ीद कब तक सोया रहेगा, कब जाग उठेगा? 10 तू कहता है, “मुझे थोड़ी देर सोने दे, थोड़ी देर ऊँघने दे, थोड़ी देर हाथ पर हाथ धरे बैठने दे ताकि आराम कर सकूँ।” 11 लेकिन ख़बरदार, जल्द ही ग़ुरबत राहज़न की तरह तुझ पर आएगी, मुफ़लिसी हथियार से लेस डाकू की तरह तुझ पर टूट पड़ेगी।
12 बदमाश और कमीना किस तरह पहचाना जाता है? वह मुँह में झूट लिए फिरता है, 13 अपनी आँखों, पाँवों और उँगलियों से इशारा करके तुझे फ़रेब के जाल में फँसाने की कोशिश करता है। 14 उसके दिल में कजी है, और वह हर वक़्त बुरे मनसूबे बाँधने में लगा रहता है। जहाँ भी जाए वहाँ झगड़े छिड़ जाते हैं। 15 लेकिन ऐसे शख़्स पर अचानक ही आफ़त आएगी। एक ही लमहे में वह पाश पाश हो जाएगा। तब उसका इलाज नामुमकिन होगा।
16 रब छः चीज़ों से नफ़रत बल्कि सात चीज़ों से घिन खाता है,
17 वह आँखें जो ग़ुरूर से देखती हैं, वह ज़बान जो झूट बोलती है, वह हाथ जो बेगुनाहों को क़त्ल करते हैं, 18 वह दिल जो बुरे मनसूबे बाँधता है, वह पाँव जो दूसरों को नुक़सान पहुँचाने के लिए भागते हैं, 19 वह गवाह जो अदालत में झूट बोलता और वह जो भाइयों में झगड़ा पैदा करता है।
ज़िना करने से ख़बरदार
20 मेरे बेटे, अपने बाप के हुक्म से लिपटा रह, और अपनी माँ की हिदायत नज़रंदाज़ न कर। 21 उन्हें यों अपने दिल के साथ बाँधे रख कि कभी दूर न हो जाएँ। उन्हें हार की तरह अपने गले में डाल ले। 22 चलते वक़्त वह तेरी राहनुमाई करें, आराम करते वक़्त तेरी पहरादारी करें, जागते वक़्त तुझसे हमकलाम हों। 23 क्योंकि बाप का हुक्म चराग़ और माँ की हिदायत रौशनी है, तरबियत की डाँट-डपट ज़िंदगीबख़्श राह है। 24 यों तू बदकार औरत और दूसरे की ज़िनाकार बीवी की चिकनी-चुपड़ी बातों से महफ़ूज़ रहेगा। 25 दिल में उसके हुस्न का लालच न कर, ऐसा न हो कि वह पलक मार मारकर तुझे पकड़ ले। 26 क्योंकि गो कसबी आदमी को उसके पैसे से महरूम करती है, लेकिन दूसरे की ज़िनाकार बीवी उस की क़ीमती जान का शिकार करती है।
27 क्या इनसान अपनी झोली में भड़कती आग यों उठाकर फिर सकता है कि उसके कपड़े न जलें? 28 या क्या कोई दहकते कोयलों पर यों फिर सकता है कि उसके पाँव झुलस न जाएँ? 29 इसी तरह जो किसी दूसरे की बीवी से हमबिसतर हो जाए उसका अंजाम बुरा है, जो भी दूसरे की बीवी को छेड़े उसे सज़ा मिलेगी। 30 जो भूक के मारे अपना पेट भरने के लिए चोरी करे उसे लोग हद से ज़्यादा हक़ीर नहीं जानते, 31 हालाँकि उसे चोरी किए हुए माल को सात गुना वापस करना है और उसके घर की दौलत जाती रहेगी। 32 लेकिन जो किसी दूसरे की बीवी के साथ ज़िना करे वह बेअक़्ल है। जो अपनी जान को तबाह करना चाहे वही ऐसा करता है। 33 उस की पिटाई और बेइज़्ज़ती की जाएगी, और उस की शरमिंदगी कभी नहीं मिटेगी। 34 क्योंकि शौहर ग़ैरत खाकर और तैश में आकर बेरहमी से बदला लेगा। 35 न वह कोई मुआवज़ा क़बूल करेगा, न रिश्वत लेगा, ख़ाह कितनी ज़्यादा क्यों न हो।