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फ़िलिस्तियों में अहद का संदूक़
फ़िलिस्ती अल्लाह का संदूक़ अबन-अज़र से अशदूद शहर में ले गए। वहाँ उन्होंने उसे अपने देवता दजून के मंदिर में बुत के क़रीब रख दिया। अगले दिन सुबह-सवेरे जब अशदूद के बाशिंदे मंदिर में दाख़िल हुए तो क्या देखते हैं कि दजून का मुजस्समा मुँह के बल रब के संदूक़ के सामने ही पड़ा है। उन्होंने दजून को उठाकर दुबारा उस की जगह पर खड़ा किया। लेकिन अगले दिन जब सुबह-सवेरे आए तो दजून दुबारा मुँह के बल रब के संदूक़ के सामने पड़ा हुआ था। लेकिन इस मरतबा बुत का सर और हाथ टूटकर दहलीज़ पर पड़े थे। सिर्फ़ धड़ रह गया था। यही वजह है कि आज तक दजून का कोई भी पुजारी या मेहमान अशदूद के मंदिर की दहलीज़ पर क़दम नहीं रखता।
फिर रब ने अशदूद और गिर्दो-नवाह के देहातों पर सख़्त दबाव डालकर बाशिंदों को परेशान कर दिया। उनमें अचानक अज़ियतनाक फोड़ों की वबा फैल गई। जब अशदूद के लोगों ने इसकी वजह जान ली तो वह बोले, “लाज़िम है कि इसराईल के ख़ुदा का संदूक़ हमारे पास न रहे। क्योंकि उसका हम पर और हमारे देवता दजून पर दबाव नाक़ाबिले-बरदाश्त है।”
उन्होंने तमाम फ़िलिस्ती हुक्मरानों को इकट्ठा करके पूछा, “हम इसराईल के ख़ुदा के संदूक़ के साथ क्या करें?”
उन्होंने मशवरा दिया, “उसे जात शहर में ले जाएँ।” लेकिन जब अहद का संदूक़ जात में छोड़ा गया तो रब का दबाव उस शहर पर भी आ गया। बड़ी अफ़रा-तफ़री पैदा हुई, क्योंकि छोटों से लेकर बड़ों तक सबको अज़ियतनाक फोड़े निकल आए। 10 तब उन्होंने अहद का संदूक़ आगे अक़रून भेज दिया।
लेकिन संदूक़ अभी पहुँचनेवाला था कि अक़रून के बाशिंदे चीख़ने लगे, “वह इसराईल के ख़ुदा का संदूक़ हमारे पास लाए हैं ताकि हमें हलाक कर दें!” 11 तमाम फ़िलिस्ती हुक्मरानों को दुबारा बुलाया गया, और अक़रूनियों ने तक़ाज़ा किया कि संदूक़ को शहर से दूर किया जाए। वह बोले, “इसे वहाँ वापस भेजा जाए जहाँ से आया है, वरना यह हमें बल्कि पूरी क़ौम को हलाक कर डालेगा।” क्योंकि शहर पर रब का सख़्त दबाव हावी हो गया था। मोहलक वबा के बाइस उसमें ख़ौफ़ो-हिरास की लहर दौड़ गई। 12 जो मरने से बचा उसे कम अज़ कम फोड़े निकल आए। चारों तरफ़ लोगों की चीख़-पुकार फ़िज़ा में बुलंद हुई।