पतरस का पहला 'आम ख़त
मुसन्निफ़ की पहचान
शुरूआती आयत इशरा करती है कि पतरस, येसू मसीह का रसूल इस ख़त का मुसन्निफ़ है। जो ख़ुद को येसू मसीह का रसूल कहलाता था (1 पतरस 1:1) मसीह के दुखों की बाबत उसके अक्सर हवालाजात; (2:21 — 24; 3:18; 4:1; 5:1) दिखाते हैं कि दुख उठाने वाले ख़ादिम की सूरत उस की याददाश्त पर गहराई से थी। वह मरक़ुस को अपना बेटा कहता है (5:13) (आ‘माल 12:12) में एक जवान के लिए उस पर शफ़्क़त ज़ाहिर करते हुए उस ने उस के ख़ान्दान का ज़िक्र किया। यह सच्चाइयाँ फ़ितरी तौर से इस नतीजे पर पहुंचाती हैं कि पतरस ने ही इस ख़त को लिखा।
लिखे जाने की तारीख़ और जगह
तक़रीबन 60 - 64 ईस्वी के बीच लिखा गया।
5:13 में मुसन्निफ़ बाबुल की कलीसिया की तरफ़ से सलाम पहुंचाता है।
क़बूल कुनिन्दा पाने वाले
पतरस ने इस ख़त को मसीहियों की एक जमाअत को लिखा जो एशिया माइनर के तमाम शुमाली इलाक़ों में जा — बजा फैले हुए थे। उस ने एक ऐसी जमाअत को भी लिखा जो ग़ालिबन यहूदी और ग़ैर यहूदी दोनों थे।
असल मक़सूद
पतरस ने इस के लिखने के मक़्सद को बताया है, जैसे कि क़ारिईन की हौसला अफ़्ज़ाई जो अपने ईमान के लिए सताव का सामना कर रहे थे। वह उन्हें पूरी तरह से यक़ीन दिलाना चाहता था जहाँ मसीहियत है वहाँ ख़ुदा का फ़ज़ल भी पाया जाता है, और इसलिए उन्हें ईमान से बर्गुश्ता होने की ज़रूरत नहीं है। जिस तरह 1 पतरस 5:12 में ज़िक्र किया गया है कि मैं ने यह मुख़्तसर सा ख़त लिखवा कर तुम्हें भेजा है कि ताकि तुम्हारी हौसला अफ़्ज़ाई हो, मैं गवाही देता हूँ कि ख़ुदा का सच्चा फ़ज़ल यही है। उस पर क़ाइम रहना सबूत के साथ यह सताव उसके क़ारिईन के बीच फैलता जा रहा था। पहला पतरस मसीहियों के सताव को पूरे शुमाली एशिया माइनर में मुन्अकिस करता है।
मौज़’अ
1 मुसीबतों के लिए जवाब दिया जाना।
बैरूनी ख़ाका
1. सलाम के अल्फ़ाज़ — 1:1, 2
2. ख़ुदा के फ़ज़ल के लिए उसकी हम्द — ओ — तारीफ़ — 1:3-12
3. ज़िन्दगी की पाकीज़्गी के लिए नसीहत — 1:13-5:12
4. आख़री सलाम के अल्फ़ाज़ — 5:13, 14
1
पतरस का सलाम
पतरस की तरफ़ से जो ईसा मसीह का रसूल है, उन मुसाफ़िरों के नाम ख़त, जो पुन्तुस, ग़लतिया, क्प्प्दुकिया, असिया और बीथुइनिया सूबे में जा बजा रहते है, और ख़ुदा बाप के 'इल्म — ए — साबिक़ के मुवाफ़िक़ रूह के पाक करने से फ़रमाँबरदार होने और ईसा मसीह का ख़ून छिड़के जाने के लिए बरगुज़ीदा हुए है। फ़ज़ल और इत्मीनान तुम्हें ज़्यादा हासिल होता रहे।
हमारे ख़ुदावन्द ईसा मसीह के ख़ुदा और बाप की हम्द हो, जिसने ईसा मसीह के मुर्दों में से जी उठने के ज़रिए, अपनी बड़ी रहमत से हमे ज़िन्दा उम्मीद के लिए नए सिरे से पैदा किया, ताकि एक ग़ैरफ़ानी और बेदाग़ और लाज़वाल मीरास को हासिल करें; वो तुम्हारे वास्ते [जो ख़ुदा की क़ुदरत से ईमान के वसीले से, उस नजात के लिए जो आख़री वक़्त में ज़ाहिर होने को तैयार है, हिफ़ाज़त किए जाते हो] आसमान पर महफ़ूज़ है।
इस की वजह से तुम ख़ुशी मनाते हो, अगरचे अब चन्द रोज़ के लिए ज़रूरत की वजह से, तरह तरह की आज़्माइशों की वजह से ग़मज़दा हो; और ये इस लिए कि तुम्हारा आज़माया हुआ ईमान, जो आग से आज़माए हुए फ़ानी सोने से भी बहुत ही बेशक़ीमती है, ईसा मसीह के ज़हूर के वक़्त तारीफ़ और जलाल और 'इज़्ज़त का ज़रिया ठहरे।
उससे तुम अनदेखी मुहब्बत रखते हो और अगरचे इस वक़्त उसको नहीं देखते तो भी उस पर ईमान लाकर ऐसी ख़ुशी मनाते हो जो बयान से बाहर और जलाल से भरी है; और अपने ईमान का मक़सद या'नी रूहों की नजात हासिल करते हो।
10 इसी नजात के बारे में नबियों ने बड़ी तलाश और तहक़ीक़ की, जिन्होंने उस फ़ज़ल के बारे में जो तुम पर होने को था नबुव्वत की।
11 उन्होंने इस बात की तहक़ीक़ की कि मसीह का रूह जो उस में था, और पहले मसीह के दुखों और उनके ज़िन्दा हो उठने के बाद उसके के जलाल की गवाही देता था, वो कौन से और कैसे वक़्त की तरफ़ इशारा करता था। 12 उन पर ये ज़ाहिर किया गया कि वो न अपनी बल्कि तुम्हारी ख़िदमत के लिए ये बातें कहा करते थे, जिनकी ख़बर अब तुम को उनके ज़रिए मिली जिन्होंने रूह — उल — क़ुद्दुस के वसीले से, जो आसमान पर से भेजा गया तुम को ख़ुशख़बरी दी; और फ़रिश्ते भी इन बातों पर ग़ौर से नज़र करने के मुश्ताक़ हैं।
13 इस वास्ते अपनी 'अक़्ल की कमर बाँधकर और होशियार होकर, उस फ़ज़ल की पूरी उम्मीद रख्खो जो ईसा मसीह के ज़हूर के वक़्त तुम पर होने वाला है। 14 और फ़रमाँबरदार बेटा होकर अपनी जहालत के ज़माने की पुरानी ख़्वाहिशों के ताबे' न बनो।
15 बल्कि जिस तरह तुम्हारा बुलानेवाला पाक, है, उसी तरह तुम भी अपने सारे चाल — चलन में पाक बनो; 16 क्यूँकि पाक कलाम में लिखा है, “पाक हो, इसलिए कि मैं पाक हूँ।” 17 और जब कि तुम 'बाप' कह कर उससे दुआ करते हो, जो हर एक के काम के मुवाफ़िक़ बग़ैर तरफ़दारी के इन्साफ़ करता है, तो अपनी मुसाफ़िरत का ज़माना ख़ौफ़ के साथ गुज़ारो।
18 क्यूँकि तुम जानते हो कि तुम्हारा निकम्मा चाल — चलन जो बाप — दादा से चला आता था, उससे तुम्हारी ख़लासी फ़ानी चीज़ों या'नी सोने चाँदी के ज़रिए से नहीं हुई; 19 बल्कि एक बे'ऐब और बेदाग़ बर्रे, या'नी मसीह के बेश क़ीमत ख़ून से।
20 उसका 'इल्म तो दुनियाँ बनाने से पहले से था, मगर ज़हूर आख़िरी ज़माने में तुम्हारी ख़ातिर हुआ, 21 कि उस के वसीले से ख़ुदा पर ईमान लाए हो, जिसने उस को मुर्दों में से जिलाया और जलाल बख़्शा ताकि तुम्हारा ईमान और उम्मीद ख़ुदा पर हो।
22 चूँकि तुम ने हक़ की ताबे 'दारी से अपने दिलों को पाक किया है, जिससे भाइयों की बे'रिया मुहब्बत पैदा हुई, इसलिए दिल — ओ — जान से आपस में बहुत मुहब्बत रख्खो। 23 क्यूँकि तुम मिटने वाले बीज से नहीं बल्कि ग़ैर फ़ानी से ख़ुदा के कलाम के वसीले से, जो ज़िंदा और क़ाईम है, नए सिरे से पैदा हुए हो।
24 चुनाँचे हर आदमी घास की तरह है, और उसकी सारी शान — ओ — शौकत घास के फूल की तरह।
घास तो सूख जाती है, और फूल गिर जाता है।
25 लेकिन ख़ुदावन्द का कलाम हमेशा तक क़ाईम रहेगा।
ये वही ख़ुशख़बरी का कलाम है जो तुम्हें सुनाया गया था।