28
 1 ऐ ख़ुदावन्द, मैं तुझ ही को पुकारूँगा;  
ऐ मेरी चट्टान, तू मेरी तरफ़ से कान बन्द न कर;  
ऐसा न हो कि अगर तू मेरी तरफ़ से खामोश रहे तो मैं उनकी तरह बन जाऊँ,  
जो पाताल में जाते हैं।   
 2 जब मैं तुझ से फ़रियाद करूँ,  
और अपने हाथ तेरी मुक़द्दस हैकल की तरफ़ उठाऊँ,  
तो मेरी मिन्नत की आवाज़ को सुन ले।   
 3 मुझे उन शरीरों और बदकिरदारों के साथ घसीट न ले जा;  
जो अपने पड़ोसियों से सुलह की बातें करते हैं,  
मगर उनके दिलों में बदी है।   
 4 उनके अफ़'आल — ओ — आ'माल की बुराई के मुवाफ़िक़ उनको बदला दे,  
उनके हाथों के कामों के मुताबिक़ उनसे सुलूक कर;  
उनके किए का बदला उनको दे।   
 5 वह ख़ुदावन्द के कामों  
और उसकी दस्तकारी पर ध्यान नहीं करते,  
इसलिए वह उनको गिरा देगा और फिर नहीं उठाएगा।   
 6 ख़ुदावन्द मुबारक हो,  
इसलिए के उसने मेरी मिन्नत की आवाज़ सुन ली।   
 7 ख़ुदावन्द मेरी ताक़त और मेरी ढाल है;  
मेरे दिल ने उस पर भरोसा किया है, और मुझे मदद मिली है।  
इसलिए मेरा दिल बहुत ख़ुश है;  
और मैं गीत गाकर उसकी सिताइश करूँगा।   
 8 ख़ुदावन्द उनकी ताक़त है,  
वह अपने मम्सूह के लिए नजात का क़िला' है।   
 9 अपनी उम्मत को बचा, और अपनी मीरास को बरकत दे;  
उनकी पासबानी कर, और उनको हमेशा तक संभाले रह।