32
 1 मुबारक है वह जिसकी ख़ता बख़्शी गई,  
और जिसका गुनाह ढाँका गया।   
 2 मुबारक है वह आदमी जिसकी बदकारी को ख़ुदावन्द हिसाब में नहीं लाता,  
और जिसके दिल में दिखावा नहीं।   
 3 जब मैं ख़ामोश रहा  
तो दिन भर के कराहने से मेरी हड्डियाँ घुल गई।   
 4 क्यूँकि तेरा हाथ रात दिन मुझ पर भारी था;  
मेरी तरावट गर्मियों की खु़श्की से बदल गई। सिलाह   
 5 मैंने तेरे सामने अपने गुनाह को मान लिया और अपनी बदकारी को न छिपाया,  
मैंने कहा, मैं ख़ुदावन्द के सामने अपनी ख़ताओं का इक़रार करूँगा  
और तूने मेरे गुनाह की बुराई को मु'आफ़ किया। सिलाह   
 6 इसीलिए हर दीनदार तुझ से ऐसे वक़्त में दुआ करे जब तू मिल सकता है।  
यक़ीनन जब सैलाब आए तो उस तक नहीं पहुँचेगा।   
 7 तू मेरे छिपने की जगह है; तू मुझे दुख से बचाये रख्खेगा;  
तू मुझे रिहाई के नाग़मों से घेर लेगा। सिलाह   
 8 मैं तुझे ता'लीम दूँगा, और जिस राह पर तुझे चलना होगा तुझे बताऊँगा;  
मैं तुझे सलाह दूँगा, मेरी नज़र तुझ पर होगी।   
 9 तुम घोड़े या खच्चर की तरह न बनो जिनमें समझ नहीं,  
जिनको क़ाबू में रखने का साज़ दहाना और लगाम है,  
वर्ना वह तेरे पास आने के भी नहीं।   
 10 शरीर पर बहुत सी मुसीबतें आएँगी;  
पर जिसका भरोसा ख़ुदावन्द पर है,  
रहमत उसे घेरे रहेगी।   
 11 ऐ सादिक़ो, ख़ुदावन्द में ख़ुश — ओ — बुर्रम रहो;  
और ऐ रास्तदिलो, खु़शी से ललकारो!