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 1 ऐ ख़ुदा! मुझ पर रहम फ़रमा,  
क्यूँकि इंसान मुझे निगलना चाहता है;  
वह दिन भर लड़कर मुझे सताता है।   
 2 मेरे दुश्मन दिन भर मुझे निगलना चाहते हैं,  
क्यूँकि जो गु़रूर करके मुझ से लड़ते हैं, वह बहुत हैं।   
 3 जिस वक़्त मुझे डर लगेगा,  
मैं तुझ पर भरोसा करूँगा।   
 4 मेरा फ़ख़्र ख़ुदा पर और उसके कलाम पर है।  
मेरा भरोसा ख़ुदा पर है,  
मैं डरने का नहीं:बशर मेरा क्या कर सकता है?   
 5 वह दिन भर मेरी बातों को मरोड़ते रहते हैं;  
उनके ख़याल सरासर यही हैं, कि मुझ से बदी करें।   
 6 वह इकठ्ठे होकर छिप जाते हैं;  
वह मेरे नक्श — ए — क़दम को देखते भालते हैं,  
क्यूँकि वह मेरी जान की घात में हैं।   
 7 क्या वह बदकारी करके बच जाएँगे?  
ऐ ख़ुदा, क़हर में उम्मतों को गिरा दे!   
 8 तू मेरी आवारगी का हिसाब रखता है;  
मेरे आँसुओं को अपने मश्कीज़े में रख ले।  
क्या वह तेरी किताब में लिखे नहीं हैं?   
 9 तब तो जिस दिन मैं फ़रियाद करूँगा,  
मेरे दुश्मन पस्पा होंगे।  
मुझे यह मा'लूम है कि ख़ुदा मेरी तरफ़ है।   
 10 मेरा फ़ख़्र ख़ुदा पर और उसके कलाम पर है;  
मेरा फ़ख़्र ख़ुदावन्द पर और उसके कलाम पर है।   
 11 मेरा भरोसा ख़ुदा पर है, मैं डरने का नहीं।  
इंसान मेरा क्या कर सकता है?   
 12 ऐ ख़ुदा! तेरी मन्नतें मुझ पर हैं;  
मैं तेरे हुजू़र शुक्रगुज़ारी की कु़र्बानियाँ पेश करूँगा।   
 13 क्यूँकि तूने मेरी जान को मौत से छुड़ाया;  
क्या तूने मेरे पाँव को फिसलने से नहीं बचाया,  
ताकि मैं ख़ुदा के सामने ज़िन्दों के नूर में चलूँ?