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 1 ऐ ख़ुदावन्द! मैने तेरी दुहाई दी मेरी तरफ़ जल्द आ!  
जब मैं तुझ से दुआ करूँ, तो मेरी आवाज़ पर कान लगा!   
 2 मेरी दुआ तेरे सामने ख़ुशबू की तरह हो,  
और मेरा हाथ उठाना शाम की कु़र्बानी की तरह!   
 3 ऐ ख़ुदावन्द! मेरे मुँह पर पहरा बिठा;  
मेरे लबों के दरवाजे़ की निगहबानी कर।   
 4 मेरे दिल को किसी बुरी बात की तरफ़ माइल न होने दे;  
कि बदकारों के साथ मिलकर, शरारत के कामों में मसरूफ़ हो जाए,  
और मुझे उनके नफ़ीस खाने से दूर रख।   
 5 सादिक़ मुझे मारे तो मेहरबानी होगी,  
वह मुझे तम्बीह करे तो जैसे सिर पर रौग़न होगा।  
मेरा सिर इससे इंकार न करे,  
क्यूँकि उनकी शरारत में भी मैं दुआ करता रहूँगा।   
 6 उनके हाकिम चट्टान के किनारों पर से गिरा दिए गए हैं,  
और वह मेरी बातें सुनेंगे, क्यूँकि यह शीरीन हैं।   
 7 जैसे कोई हल चलाकर ज़मीन को तोड़ता है,  
वैसे ही हमारी हड्डियाँ पाताल के मुँह पर बिखरी पड़ी हैं।   
 8 क्यूँकि ऐ मालिक ख़ुदावन्द! मेरी आँखें तेरी तरफ़ हैं;  
मेरा भरोसा तुझ पर है, मेरी जान को बेकस न छोड़!   
 9 मुझे उस फंदे से जो उन्होंने मेरे लिए लगाया है,  
और बदकिरदारों के दाम से बचा।   
 10 शरीर आप अपने जाल में फंसें,  
और मैं सलामत बच निकलूँ।