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 1 ऐ ख़ुदावन्द, मेरी दू'आ सुन,  
मेरी इल्तिजा पर कान लगा।  
अपनी वफ़ादारी और सदाक़त में मुझे जवाब दे,   
 2 और अपने बन्दे को 'अदालत में न ला,  
क्यूँकि तेरी नज़र में कोई आदमी रास्तबाज़ नहीं ठहर सकता।   
 3 इसलिए कि दुश्मन ने मेरी जान को सताया है;  
उसने मेरी ज़िन्दगी को ख़ाक में मिला दिया,  
और मुझे अँधेरी जगहों में उनकी तरह बसाया है जिनको मरे मुद्दत हो गई हो।   
 4 इसी वजह से मुझ में मेरी जान निढाल है;  
और मेरा दिल मुझ में बेकल है।   
 5 मैं पिछले ज़मानों को याद करता हूँ,  
मैं तेरे सब कामों पर ग़ौर करता हूँ,  
और तेरी दस्तकारी पर ध्यान करता हूँ।   
 6 मैं अपने हाथ तेरी तरफ़ फैलाता हूँ  
मेरी जान खु़श्क ज़मीन की तरह तेरी प्यासी है।   
 7 ऐ ख़ुदावन्द, जल्द मुझे जवाब दे:मेरी रूह गुदाज़ हो चली!  
अपना चेहरा मुझ से न छिपा,  
ऐसा न हो कि मैं क़ब्र में उतरने वालों की तरह हो जाऊँ।   
 8 सुबह को मुझे अपनी शफ़क़त की ख़बर दे,  
क्यूँकि मेरा भरोसा तुझ पर है।  
मुझे वह राह बता जिस पर मैं चलूं,  
क्यूँकि मैं अपना दिल तेरी ही तरफ़ लगाता हूँ।   
 9 ऐ ख़ुदावन्द, मुझे मेरे दुश्मनों से रिहाई बख्श;  
क्यूँकि मैं पनाह के लिए तेरे पास भाग आया हूँ।   
 10 मुझे सिखा के तेरी मर्ज़ी पर चलूँ, इसलिए कि तू मेरा ख़ुदा है!  
तेरी नेक रूह मुझे रास्ती के मुल्क में ले चले!   
 11 ऐ ख़ुदावन्द, अपने नाम की ख़ातिर मुझे ज़िन्दा कर!  
अपनी सदाक़त में मेरी जान को मुसीबत से निकाल!   
 12 अपनी शफ़क़त से मेरे दुश्मनों को काट डाल,  
और मेरी जान के सब दुख देने वालों को हलाक कर दे,  
क्यूँकि मैं तेरा बन्दा हूँ।