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1 काश मेरा सर पानी का मंबा और मेरी आँखें आँसुओं का चश्मा हों ताकि मैं दिन-रात अपनी क़ौम के मक़तूलों पर आहो-ज़ारी कर सकूँ।
धोकेबाज़ों की क़ौम
2 काश रेगिस्तान में कहीं मुसाफ़िरों के लिए सराय हो ताकि मैं अपनी क़ौम को छोड़कर वहाँ चला जाऊँ। क्योंकि सब ज़िनाकार, सब ग़द्दारों का जत्था हैं।
3 रब फ़रमाता है, “वह अपनी ज़बान से झूट के तीर चलाते हैं, और मुल्क में उनकी ताक़त दियानतदारी पर मबनी नहीं होती। नीज़, वह बदतर होते जा रहे हैं। मुझे तो वह जानते ही नहीं। 4 हर एक अपने पड़ोसी से ख़बरदार रहे, और अपने किसी भी भाई पर भरोसा मत रखना। क्योंकि हर भाई चालाकी करने में माहिर है, और हर पड़ोसी तोहमत लगाने पर तुला रहता है। 5 हर एक अपने पड़ोसी को धोका देता है, कोई भी सच नहीं बोलता। उन्होंने अपनी ज़बान को झूट बोलना सिखाया है, और अब वह ग़लत काम करते करते थक गए हैं। 6 ऐ यरमियाह, तू फ़रेब से घिरा रहता है, और यह लोग फ़रेब के बाइस ही मुझे जानने से इनकार करते हैं।”
7 इसलिए रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, “देखो, मैं उन्हें ख़ाम चाँदी की तरह पिघलाकर आज़माऊँगा, क्योंकि मैं अपनी क़ौम, अपनी बेटी के साथ और क्या कर सकता हूँ? 8 उनकी ज़बानें मोहलक तीर हैं। उनके मुँह पड़ोसी से सुलह-सलामती की बातें करते हैं जबकि अंदर ही अंदर वह उस की ताक में बैठे हैं।” 9 रब फ़रमाता है, “क्या मुझे उन्हें इसकी सज़ा नहीं देनी चाहिए? क्या मुझे ऐसी क़ौम से बदला नहीं लेना चाहिए?”
नोहा करो!
10 मैं पहाड़ों के बारे में आहो-ज़ारी करूँगा, बयाबान की चरागाहों पर मातम का गीत गाऊँगा। क्योंकि वह यों तबाह हो गए हैं कि न कोई उनमें से गुज़रता, न रेवड़ों की आवाज़ें उनमें सुनाई देती हैं। परिंदे और जानवर सब भागकर चले गए हैं। 11 “यरूशलम को मैं मलबे का ढेर बना दूँगा, और आइंदा गीदड़ उसमें जा बसेंगे। यहूदाह के शहरों को मैं वीरानो-सुनसान कर दूँगा। एक भी उनमें नहीं बसेगा।”
12 कौन इतना दानिशमंद है कि यह समझ सके? किस को रब से इतनी हिदायत मिली है कि वह बयान कर सके कि मुल्क क्यों बरबाद हो गया है? वह क्यों रेगिस्तान जैसा बन गया है, इतना वीरान कि उसमें से कोई नहीं गुज़रता?
13 रब ने फ़रमाया, “वजह यह है कि उन्होंने मेरी शरीअत को तर्क किया, वह हिदायत जो मैंने ख़ुद उन्हें दी थी। न उन्होंने मेरी सुनी, न मेरी शरीअत की पैरवी की। 14 इसके बजाए वह अपने ज़िद्दी दिलों की पैरवी करके बाल देवताओं के पीछे लग गए हैं। उन्होंने वही कुछ किया जो उनके बापदादा ने उन्हें सिखाया था।”
15 इसलिए रब्बुल-अफ़वाज जो इसराईल का ख़ुदा है फ़रमाता है, “देखो, मैं इस क़ौम को कड़वा खाना खिलाकर ज़हरीला पानी पिला दूँगा। 16 मैं उन्हें ऐसी क़ौमों में मुंतशिर कर दूँगा जिनसे न वह और न उनके बापदादा वाक़िफ़ थे। मेरी तलवार उस वक़्त तक उनके पीछे पड़ी रहेगी जब तक हलाक न हो जाएँ।” 17 रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, “ध्यान देकर गिर्या करनेवाली औरतों को बुलाओ। जो जनाज़ों पर वावैला करती हैं उनमें से सबसे माहिर औरतों को बुलाओ।
18 वह जल्द आकर हम पर आहो-ज़ारी करें ताकि हमारी आँखों से आँसू बह निकलें, हमारी पलकों से पानी ख़ूब टपकने लगे।
19 क्योंकि सिय्यून से गिर्या की आवाज़ें बुलंद हो रही हैं, ‘हाय, हमारे साथ कैसी ज़्यादती हुई है, हमारी कैसी रुसवाई हुई है! हम मुल्क को छोड़ने पर मजबूर हैं, क्योंकि दुश्मन ने हमारे घरों को ढा दिया है’।”
20 ऐ औरतो, रब का पैग़ाम सुनो। अपने कानों को उस की हर बात पर धरो! अपनी बेटियों को नोहा करने की तालीम दो, एक दूसरी को मातम का यह गीत सिखाओ,
21 “मौत फलाँगकर हमारी खिड़कियों में से घुस आई और हमारे क़िलों में दाख़िल हुई है। अब वह बच्चों को गलियों में से और नौजवानों को चौकों में से मिटा डालने जा रही है।”
22 रब फ़रमाता है, “नाशें खेतों में गोबर की तरह इधर-उधर बिखरी पड़ी रहेंगी। जिस तरह कटा हुआ गंदुम फ़सल काटनेवाले के पीछे इधर-उधर पड़ा रहता है उसी तरह लाशें इधर-उधर पड़ी रहेंगी। लेकिन उन्हें इकट्ठा करनेवाला कोई नहीं होगा।”
23 रब फ़रमाता है, “न दानिशमंद अपनी हिकमत पर फ़ख़र करे, न ज़ोरावर अपने ज़ोर पर या अमीर अपनी दौलत पर। 24 फ़ख़र करनेवाला फ़ख़र करे कि उसे समझ हासिल है, कि वह रब को जानता है और कि मैं रब हूँ जो दुनिया में मेहरबानी, इनसाफ़ और रास्ती को अमल में लाता हूँ। क्योंकि यही चीज़ें मुझे पसंद हैं।”
25 रब फ़रमाता है, “ऐसा वक़्त आ रहा है जब मैं उन सबको सज़ा दूँगा जिनका सिर्फ़ जिस्मानी ख़तना हुआ है। 26 इनमें मिसर, यहूदाह, अदोम, अम्मोन, मोआब और वह शामिल हैं जो रेगिस्तान के किनारे किनारे रहते हैं। क्योंकि गो यह तमाम अक़वाम ज़ाहिरी तौर पर ख़तना की रस्म अदा करती हैं, लेकिन उनका ख़तना बातिनी तौर पर नहीं हुआ। ध्यान दो कि इसराईल की भी यही हालत है।”