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ख़िदमतगुज़ार ख़वातीन ईसा के साथ सफ़र करती हैं
1 इसके कुछ देर बाद ईसा मुख़्तलिफ़ शहरों और देहातों में से गुज़रकर सफ़र करने लगा। हर जगह उसने अल्लाह की बादशाही के बारे में ख़ुशख़बरी सुनाई। उसके बारह शागिर्द उसके साथ थे, 2 नीज़ कुछ ख़वातीन भी जिन्हें उसने बदरूहों से रिहाई और बीमारियों से शफ़ा दी थी। इनमें से एक मरियम थी जो मग्दलीनी कहलाती थी जिसमें से सात बदरूहें निकाली गई थीं। 3 फिर युअन्ना जो ख़ूज़ा की बीवी थी (ख़ूज़ा हेरोदेस बादशाह का एक अफ़सर था)। सूसन्ना और दीगर कई ख़वातीन भी थीं जो अपने माली वसायल से उनकी ख़िदमत करती थीं।
बीज बोनेवाले की तमसील
4 एक दिन ईसा ने एक बड़े हुजूम को एक तमसील सुनाई। लोग मुख़्तलिफ़ शहरों से उसे सुनने के लिए जमा हो गए थे।
5 “एक किसान बीज बोने के लिए निकला। जब बीज इधर-उधर बिखर गया तो कुछ दाने रास्ते पर गिरे। वहाँ उन्हें पाँवों तले कुचला गया और परिंदों ने उन्हें चुग लिया। 6 कुछ पथरीली ज़मीन पर गिरे। वहाँ वह उगने तो लगे, लेकिन नमी की कमी थी, इसलिए पौदे कुछ देर के बाद सूख गए। 7 कुछ दाने ख़ुदरौ काँटेदार पौदों के दरमियान भी गिरे। वहाँ वह उगने तो लगे, लेकिन ख़ुदरौ पौदों ने साथ साथ बढ़कर उन्हें फलने फूलने की जगह न दी। चुनाँचे वह भी ख़त्म हो गए। 8 लेकिन ऐसे दाने भी थे जो ज़रख़ेज़ ज़मीन पर गिरे। वहाँ वह उग सके और जब फ़सल पक गई तो सौ गुना ज़्यादा फल पैदा हुआ।”
यह कहकर ईसा पुकार उठा, “जो सुन सकता है वह सुन ले!”
तमसीलों का मक़सद
9 उसके शागिर्दों ने उससे पूछा कि इस तमसील का क्या मतलब है? 10 जवाब में उसने कहा, “तुमको तो अल्लाह की बादशाही के भेद समझने की लियाक़त दी गई है। लेकिन मैं दूसरों को समझाने के लिए तमसीलें इस्तेमाल करता हूँ ताकि पाक कलाम पूरा हो जाए कि ‘वह अपनी आँखों से देखेंगे मगर कुछ नहीं जानेंगे, वह अपने कानों से सुनेंगे मगर कुछ नहीं समझेंगे।’
बीज बोनेवाले की तमसील का मतलब
11 तमसील का मतलब यह है : बीज से मुराद अल्लाह का कलाम है। 12 राह पर गिरे हुए दाने वह लोग हैं जो कलाम सुनते तो हैं, लेकिन फिर इबलीस आकर उसे उनके दिलों से छीन लेता है, ऐसा न हो कि वह ईमान लाकर नजात पाएँ। 13 पथरीली ज़मीन पर गिरे हुए दाने वह लोग हैं जो कलाम सुनकर उसे ख़ुशी से क़बूल तो कर लेते हैं, लेकिन जड़ नहीं पकड़ते। नतीजे में अगरचे वह कुछ देर के लिए ईमान रखते हैं तो भी जब किसी आज़माइश का सामना करना पड़ता है तो वह बरगश्ता हो जाते हैं। 14 ख़ुदरौ काँटेदार पौदों के दरमियान गिरे हुए दाने वह लोग हैं जो सुनते तो हैं, लेकिन जब वह चले जाते हैं तो रोज़मर्रा की परेशानियाँ, दौलत और ज़िंदगी की ऐशो-इशरत उन्हें फलने फूलने नहीं देती। नतीजे में वह फल लाने तक नहीं पहुँचते। 15 इसके मुक़ाबले में ज़रख़ेज़ ज़मीन में गिरे हुए दाने वह लोग हैं जिनका दिल दियानतदार और अच्छा है। जब वह कलाम सुनते हैं तो वह उसे अपनाते और साबितक़दमी से तरक़्क़ी करते करते फल लाते हैं।
कोई चराग़ को बरतन के नीचे नहीं छुपाता
16 जब कोई चराग़ जलाता है तो वह उसे किसी बरतन या चारपाई के नीचे नहीं रखता, बल्कि उसे शमादान पर रख देता है ताकि उस की रौशनी अंदर आनेवालों को नज़र आए।
17 जो कुछ भी इस वक़्त पोशीदा है वह आख़िर में ज़ाहिर हो जाएगा, और जो कुछ भी छुपा हुआ है वह मालूम हो जाएगा और रौशनी में लाया जाएगा।
18 चुनाँचे इस पर ध्यान दो कि तुम किस तरह सुनते हो। क्योंकि जिसके पास कुछ है उसे और दिया जाएगा, जबकि जिसके पास कुछ नहीं है उससे वह भी छीन लिया जाएगा जिसके बारे में वह ख़याल करता है कि उसका है।”
ईसा की माँ और भाई
19 एक दिन ईसा की माँ और भाई उसके पास आए, लेकिन वह हुजूम की वजह से उस तक न पहुँच सके। 20 चुनाँचे ईसा को इत्तला दी गई, “आपकी माँ और भाई बाहर खड़े हैं और आपसे मिलना चाहते हैं।”
21 उसने जवाब दिया, “मेरी माँ और भाई वह सब हैं जो अल्लाह का कलाम सुनकर उस पर अमल करते हैं।”
ईसा आँधी को थमा देता है
22 एक दिन ईसा ने अपने शागिर्दों से कहा, “आओ, हम झील को पार करें।” चुनाँचे वह कश्ती पर सवार होकर रवाना हुए। 23 जब कश्ती चली जा रही थी तो ईसा सो गया। अचानक झील पर आँधी आई। कश्ती पानी से भरने लगी और डूबने का ख़तरा था। 24 फिर उन्होंने ईसा के पास जाकर उसे जगा दिया और कहा, “उस्ताद, उस्ताद, हम तबाह हो रहे हैं।”
वह जाग उठा और आँधी और मौजों को डाँटा। आँधी थम गई और लहरें बिलकुल साकित हो गईं। 25 फिर उसने शागिर्दों से पूछा, “तुम्हारा ईमान कहाँ है?”
उन पर ख़ौफ़ तारी हो गया और वह सख़्त हैरान होकर आपस में कहने लगे, “आख़िर यह कौन है? वह हवा और पानी को भी हुक्म देता है, और वह उस की मानते हैं।”
ईसा एक गरासीनी आदमी से बदरूहें निकाल देता है
26 फिर वह सफ़र जारी रखते हुए गरासा के इलाक़े के किनारे पर पहुँचे जो झील के पार गलील के मुक़ाबिल है। 27 जब ईसा कश्ती से उतरा तो शहर का एक आदमी ईसा को मिला जो बदरूहों की गिरिफ़्त में था। वह काफ़ी देर से कपड़े पहने बग़ैर चलता-फिरता था और अपने घर के बजाए क़ब्रों में रहता था। 28 ईसा को देखकर वह चिल्लाया और उसके सामने गिर गया। ऊँची आवाज़ से उसने कहा, “ईसा अल्लाह तआला के फ़रज़ंद, मेरा आपके साथ क्या वास्ता है? मैं मिन्नत करता हूँ, मुझे अज़ाब में न डालें।” 29 क्योंकि ईसा ने नापाक रूह को हुक्म दिया था, “आदमी में से निकल जा!” इस बदरूह ने बड़ी देर से उस पर क़ब्ज़ा किया हुआ था, इसलिए लोगों ने उसके हाथ-पाँव ज़ंजीरों से बाँधकर उस की पहरादारी करने की कोशिश की थी, लेकिन बेफ़ायदा। वह ज़ंजीरों को तोड़ डालता और बदरूह उसे वीरान इलाक़ों में भगाए फिरती थी।
30 ईसा ने उससे पूछा, “तेरा नाम क्या है?” उसने जवाब दिया, “लशकर।” इस नाम की वजह यह थी कि उसमें बहुत-सी बदरूहें घुसी हुई थीं। 31 अब यह मिन्नत करने लगीं, “हमें अथाह गढ़े में जाने को न कहें।”
32 उस वक़्त क़रीब की पहाड़ी पर सुअरों का बड़ा ग़ोल चर रहा था। बदरूहों ने ईसा से इलतमास की, “हमें उन सुअरों में दाख़िल होने दें।” उसने इजाज़त दे दी। 33 चुनाँचे वह उस आदमी में से निकलकर सुअरों में जा घुसीं। इस पर पूरे ग़ोल के सुअर भाग भागकर पहाड़ी की ढलान पर से उतरे और झील में झपटकर डूब मरे।
34 यह देखकर सुअरों के गल्लाबान भाग गए। उन्होंने शहर और देहात में इस बात का चर्चा किया 35 तो लोग यह मालूम करने के लिए कि क्या हुआ है अपनी जगहों से निकलकर ईसा के पास आए। उसके पास पहुँचे तो वह आदमी मिला जिससे बदरूहें निकल गई थीं। अब वह कपड़े पहने ईसा के पाँवों में बैठा था और उस की ज़हनी हालत ठीक थी। यह देखकर वह डर गए। 36 जिन्होंने सब कुछ देखा था उन्होंने लोगों को बताया कि इस बदरूह-गिरिफ़्ता आदमी को किस तरह रिहाई मिली है। 37 फिर उस इलाक़े के तमाम लोगों ने ईसा से दरख़ास्त की कि वह उन्हें छोड़कर चला जाए, क्योंकि उन पर बड़ा ख़ौफ़ छा गया था। चुनाँचे ईसा कश्ती पर सवार होकर वापस चला गया। 38 जिस आदमी से बदरूहें निकल गई थीं उसने उससे इलतमास की, “मुझे भी अपने साथ जाने दें।”
लेकिन ईसा ने उसे इजाज़त न दी बल्कि कहा, 39 “अपने घर वापस चला जा और दूसरों को वह सब कुछ बता जो अल्लाह ने तेरे लिए किया है।”
चुनाँचे वह वापस चला गया और पूरे शहर में लोगों को बताने लगा कि ईसा ने मेरे लिए क्या कुछ किया है।
याईर की बेटी और बीमार ख़ातून
40 जब ईसा झील के दूसरे किनारे पर वापस पहुँचा तो लोगों ने उसका इस्तक़बाल किया, क्योंकि वह उसके इंतज़ार में थे। 41 इतने में एक आदमी ईसा के पास आया जिसका नाम याईर था। वह मक़ामी इबादतख़ाने का राहनुमा था। वह ईसा के पाँवों में गिरकर मिन्नत करने लगा, “मेरे घर चलें।” 42 क्योंकि उस की इकलौती बेटी जो तक़रीबन बारह साल की थी मरने को थी।
ईसा चल पड़ा। हुजूम ने उसे यों घेरा हुआ था कि साँस लेना भी मुश्किल था। 43 हुजूम में एक ख़ातून थी जो बारह साल से ख़ून बहने के मरज़ से रिहाई न पा सकी थी। कोई उसे शफ़ा न दे सका था। 44 अब उसने पीछे से आकर ईसा के लिबास के किनारे को छुआ। ख़ून बहना फ़ौरन बंद हो गया। 45 लेकिन ईसा ने पूछा, “किसने मुझे छुआ है?”
सबने इनकार किया और पतरस ने कहा, “उस्ताद, यह तमाम लोग तो आपको घेरकर दबा रहे हैं।”
46 लेकिन ईसा ने इसरार किया, “किसी ने ज़रूर मुझे छुआ है, क्योंकि मुझे महसूस हुआ है कि मुझमें से तवानाई निकली है।” 47 जब उस ख़ातून ने देखा कि भेद खुल गया तो वह लरज़ती हुई आई और उसके सामने गिर गई। पूरे हुजूम की मौजूदगी में उसने बयान किया कि उसने ईसा को क्यों छुआ था और कि छूते ही उसे शफ़ा मिल गई थी। 48 ईसा ने कहा, “बेटी, तेरे ईमान ने तुझे बचा लिया है। सलामती से चली जा।”
49 ईसा ने यह बात अभी ख़त्म नहीं की थी कि इबादतख़ाने के राहनुमा याईर के घर से कोई शख़्स आ पहुँचा। उसने कहा, “आपकी बेटी फ़ौत हो चुकी है, अब उस्ताद को मज़ीद तकलीफ़ न दें।”
50 लेकिन ईसा ने यह सुनकर कहा, “मत घबरा। फ़क़त ईमान रख तो वह बच जाएगी।”
51 वह घर पहुँच गए तो ईसा ने किसी को भी सिवाए पतरस, यूहन्ना, याक़ूब और बेटी के वालिदैन के अंदर आने की इजाज़त न दी। 52 तमाम लोग रो रहे और छाती पीट पीटकर मातम कर रहे थे। ईसा ने कहा, “ख़ामोश! वह मर नहीं गई बल्कि सो रही है।”
53 लोग हँसकर उसका मज़ाक़ उड़ाने लगे, क्योंकि वह जानते थे कि लड़की मर गई है। 54 लेकिन ईसा ने लड़की का हाथ पकड़कर ऊँची आवाज़ से कहा, “बेटी, जाग उठ!” 55 लड़की की जान वापस आ गई और वह फ़ौरन उठ खड़ी हुई। फिर ईसा ने हुक्म दिया कि उसे कुछ खाने को दिया जाए। 56 यह सब कुछ देखकर उसके वालिदैन हैरतज़दा हुए। लेकिन उसने उन्हें कहा कि इसके बारे में किसी को भी न बताना।