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चौथी रोया : इमामे-आज़म यशुअ
1 इसके बाद रब ने मुझे रोया में इमामे-आज़म यशुअ को दिखाया। वह रब के फ़रिश्ते के सामने खड़ा था, और इबलीस उस पर इलज़ाम लगाने के लिए उसके दाएँ हाथ खड़ा हो गया था। 2 रब ने इबलीस से फ़रमाया, “ऐ इबलीस, रब तुझे मलामत करता है! रब जिसने यरूशलम को चुन लिया वह तुझे डाँटता है! यह आदमी तो बाल बाल बच गया है, उस लकड़ी की तरह जो भड़कती आग में से छीन ली गई है।”
3 यशुअ गंदे कपड़े पहने हुए फ़रिश्ते के सामने खड़ा था। 4 जो अफ़राद साथ खड़े थे उन्हें फ़रिश्ते ने हुक्म दिया, “उसके मैले कपड़े उतार दो।” फिर यशुअ से मुख़ातिब हुआ, “देख, मैंने तेरा क़ुसूर तुझसे दूर कर दिया है, और अब मैं तुझे शानदार सफ़ेद कपड़े पहना देता हूँ।” 5 मैंने कहा, “वह उसके सर पर पाक-साफ़ पगड़ी बाँधें!” चुनाँचे उन्होंने यशुअ के सर पर पाक-साफ़ पगड़ी बाँधकर उसे नए कपड़े पहनाए। रब का फ़रिश्ता साथ खड़ा रहा। 6 यशुअ से उसने बड़ी संजीदगी से कहा,
7 “रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, ‘मेरी राहों पर चलकर मेरे अहकाम पर अमल कर तो तू मेरे घर की राहनुमाई और उस की बारगाहों की देख-भाल करेगा। फिर मैं तेरे लिए यहाँ आने और हाज़िरीन में खड़े होने का रास्ता क़ायम रखूँगा।
8 ऐ इमामे-आज़म यशुअ, सुन! तू और तेरे सामने बैठे तेरे इमाम भाई मिलकर उस वक़्त की तरफ़ इशारा हैं जब मैं अपने ख़ादिम को जो कोंपल कहलाता है आने दूँगा। 9 देखो वह जौहर जो मैंने यशुअ के सामने रखा है। उस एक ही पत्थर पर सात आँखें हैं।’ रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, ‘मैं उस पर कतबा कंदा करके एक ही दिन में इस मुल्क का गुनाह मिटा दूँगा। 10 उस दिन तुम एक दूसरे को अपनी अंगूर की बेल और अपने अंजीर के दरख़्त के साये में बैठने की दावत दोगे।’ यह रब्बुल-अफ़वाज का फ़रमान है।”