तीमुथियुस के नाम प्रेरित पौलुस की पहली पत्री
लेखक
इसका लेखक पौलुस है। पत्र की विषयवस्तु स्पष्ट व्यक्त करती है कि यह पत्र प्रेरित पौलुस के द्वारा ही लिखा गया था, “पौलुस की ओर से जो मसीह यीशु का प्रेरित है” (1:1)। आरम्भिक कलीसिया इसे पौलुस का प्रामाणिक पत्र मानती थी।
लेखन तिथि एवं स्थान
लगभग ई.स. 62 - 64
पौलुस तीमुथियुस को इफिसुस में छोड़कर मकिदुनिया चला गया था। वहाँ से उसने उसे यह पत्र लिखा था (1 तीमु. 1:3; 3:14,15)।
प्रापक
जैसा नाम प्रकट करता है यह पत्र तीमुथियुस को जो प्रचार कार्य में उसका सहकर्मी एवं सहयोगी था, लिखा गया था। तीमुथियुस एवं सम्पूर्ण कलीसिया इसके लक्षित पाठक हैं।
उद्देश्य
इस पत्र का उद्देश्य यह था कि, तीमुथियुस को निर्देश देना कि परमेश्वर के परिवार का आचरण कैसा होना चाहिये (3:14-15)। और तीमुथियुस का इन निर्देशों पर स्थिर रहना। ये दो पद इस प्रथम पत्र में पौलुस के अभिप्रेत अर्थ को व्यक्त करते हैं। वह कहता है कि उसके लिखने का उद्देश्य है, तू जान ले कि लोगों को स्वयं का संचालन किस तरह करना चाहिए परमेश्वर के घराने में, जो जीविते परमेश्वर की कलीसिया है, स्तम्भ और सच्चाई की नींव है, इस गद्यांश में प्रकट है कि पौलुस अपने सहकर्मियों को पत्र लिख रहा था और निर्देशन दे रहा था कि वे कलीसियाओं को कैसे दृढ़ एवं स्थिर करें।
मूल विषय
एक युवा शिष्य के लिए निर्देश
रूपरेखा
1. सेवकाई के आचरण — 1:1-20
2. सेवकाई के सिद्धान्त — 2:1-3:16
3. सेवकाई की जिम्मेदारियाँ — 4:1-6:21
1
शुभकामनाएँ
पौलुस की ओर से जो हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर, और हमारी आशा के आधार मसीह यीशु की आज्ञा से मसीह यीशु का प्रेरित है, तीमुथियुस के नाम जो विश्वास में मेरा सच्चा पुत्र है: पिता परमेश्वर, और हमारे प्रभु मसीह यीशु की ओर से, तुझे अनुग्रह और दया, और शान्ति मिलती रहे।
झूठी शिक्षाओं के विरुद्ध चेतावनी
जैसे मैंने मकिदुनिया को जाते समय तुझे समझाया था, कि इफिसुस में रहकर कुछ लोगों को आज्ञा दे कि अन्य प्रकार की शिक्षा न दें, और उन कहानियों और अनन्त वंशावलियों पर मन न लगाएँ* 1:4 उन कहानियों और अनन्त वंशावलियों पर मन न लगाएँ: अर्थात्, उन्हें अपना ध्यान बनावटी बातों पर नहीं लगाना चाहिए या इस तरह की तुच्छ बातों के सम्बंध में महत्त्व नहीं देना चाहिए।, जिनसे विवाद होते हैं; और परमेश्वर के उस प्रबन्ध के अनुसार नहीं, जो विश्वास से सम्बंध रखता है; वैसे ही फिर भी कहता हूँ। आज्ञा का सारांश यह है कि शुद्ध मन और अच्छे विवेक, और निष्कपट विश्वास से प्रेम उत्पन्न हो। इनको छोड़कर कितने लोग फिरकर बकवाद की ओर भटक गए हैं, और व्यवस्थापक तो होना चाहते हैं, पर जो बातें कहते और जिनको दृढ़ता से बोलते हैं, उनको समझते भी नहीं।
पर हम जानते हैं कि यदि कोई व्यवस्था को व्यवस्था की रीति पर काम में लाए तो वह भली है। यह जानकर कि व्यवस्था धर्मी जन के लिये नहीं पर अधर्मियों, निरंकुशों, भक्तिहीनों, पापियों, अपवित्रों और अशुद्धों, माँ-बाप के मारनेवाले, हत्यारों, 10 व्यभिचारियों, पुरुषगामियों, मनुष्य के बेचनेवालों, झूठ बोलनेवालों, और झूठी शपथ खानेवालों, और इनको छोड़ खरे उपदेश के सब विरोधियों के लिये ठहराई गई है। 11 यही परमधन्य परमेश्वर की महिमा के उस सुसमाचार के अनुसार है, जो मुझे सौंपा गया है।
पौलुस की गवाही
12 और मैं अपने प्रभु मसीह यीशु का, जिसने मुझे सामर्थ्य दी है, धन्यवाद करता हूँ; कि उसने मुझे विश्वासयोग्य समझकर अपनी सेवा के लिये ठहराया। 13 मैं तो पहले निन्दा करनेवाला, और सतानेवाला, और अंधेर करनेवाला था; तो भी मुझ पर दया हुई, क्योंकि मैंने अविश्वास की दशा में बिन समझे बूझे ये काम किए थे। 14 और हमारे प्रभु का अनुग्रह उस विश्वास और प्रेम के साथ जो मसीह यीशु में है, बहुतायत से हुआ। 15 यह बात सच और हर प्रकार से मानने के योग्य है कि मसीह यीशु पापियों का उद्धार करने के लिये जगत में आया, जिनमें सबसे बड़ा मैं हूँ। 16 पर मुझ पर इसलिए दया हुई कि मुझ सबसे बड़े पापी में यीशु मसीह अपनी पूरी सहनशीलता दिखाए, कि जो लोग उस पर अनन्त जीवन के लिये विश्वास करेंगे, उनके लिये मैं एक आदर्श बनूँ। 17 अब सनातन राजा अर्थात् अविनाशी 1:17 अविनाशी: यह स्वयं परमेश्वर को संदर्भित करता है, इसका मतलब हैं कि वह मरता नहीं है। अनदेखे अद्वैत परमेश्वर का आदर और महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन।
तीमुथियुस का उत्तरदायित्व
18 हे पुत्र तीमुथियुस, उन भविष्यद्वाणियों के अनुसार जो पहले तेरे विषय में की गई थीं, मैं यह आज्ञा सौंपता हूँ, कि तू उनके अनुसार अच्छी लड़ाई को लड़ता रह। 19 और विश्वास और उस अच्छे विवेक को थामे रह जिसे दूर करने के कारण कितनों का विश्वास रूपी जहाज डूब गया। 20 उन्हीं में से हुमिनयुस और सिकन्दर हैं जिन्हें मैंने शैतान को सौंप दिया कि वे निन्दा करना न सीखें।

*1:4 1:4 उन कहानियों और अनन्त वंशावलियों पर मन न लगाएँ: अर्थात्, उन्हें अपना ध्यान बनावटी बातों पर नहीं लगाना चाहिए या इस तरह की तुच्छ बातों के सम्बंध में महत्त्व नहीं देना चाहिए।

1:17 1:17 अविनाशी: यह स्वयं परमेश्वर को संदर्भित करता है, इसका मतलब हैं कि वह मरता नहीं है।