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सभी के लिये प्रार्थना
अब मैं सबसे पहले यह आग्रह करता हूँ, कि विनती, प्रार्थना, निवेदन, धन्यवाद, सब मनुष्यों के लिये किए जाएँ। राजाओं और सब ऊँचे पदवालों के निमित्त इसलिए कि हम विश्राम और चैन के साथ सारी भक्ति और गरिमा में जीवन बिताएँ। यह हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर को अच्छा लगता और भाता भी है, जो यह चाहता है, कि सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भाँति पहचान लें। (यहे. 18:23) क्योंकि परमेश्वर एक ही है, और परमेश्वर और मनुष्यों के बीच में भी एक ही बिचवई है* 2:5 परमेश्वर और मनुष्यों के बीच में भी एक ही बिचवई है: वह “परमेश्वर और मनुष्यों” के बीच मध्यस्थता करानेवाला हैं, जिसका अर्थ है, वह सम्पूर्ण मानवजाति के उद्धार की इच्छा करता है।, अर्थात् मसीह यीशु जो मनुष्य है, जिसने अपने आपको सब के छुटकारे के दाम में दे दिया; ताकि उसकी गवाही ठीक समयों पर दी जाए। मैं सच कहता हूँ, झूठ नहीं बोलता, कि मैं इसी उद्देश्य से प्रचारक और प्रेरित और अन्यजातियों के लिये विश्वास और सत्य का उपदेशक ठहराया गया।
कलीसियाओं में स्त्री और पुरुष को निर्देश
इसलिए मैं चाहता हूँ, कि हर जगह पुरुष बिना क्रोध और विवाद के पवित्र हाथों को उठाकर प्रार्थना किया करें। वैसे ही स्त्रियाँ भी संकोच और संयम के साथ सुहावने 2:9 सुहावने: यहाँ पर इसका मतलब हैं, उनका ध्यान उनके पहरावे पर होना चाहिए कि यह किसी भी वर्ग के व्यक्तियों के लिए अपमान का कारण न हो, इस तरह की बातों से यह दिखता है कि उनका मन उच्च और महत्त्वपूर्ण बातों पर लगा है। वस्त्रों से अपने आपको संवारे; न कि बाल गूँथने, सोने, मोतियों, और बहुमूल्य कपड़ों से, 10 पर भले कामों से, क्योंकि परमेश्वर की भक्ति करनेवाली स्त्रियों को यही उचित भी है। 11 और स्त्री को चुपचाप पूरी अधीनता में सीखना चाहिए। 12 मैं कहता हूँ, कि स्त्री न उपदेश करे और न पुरुष पर अधिकार चलाए, परन्तु चुपचाप रहे। 13 क्योंकि आदम पहले, उसके बाद हव्वा बनाई गई। (1 कुरि. 11:8) 14 और आदम बहकाया न गया, पर स्त्री बहकावे में आकर अपराधिनी हुई। (उत्प. 3:6) 15 तो भी स्त्री बच्चे जनने के द्वारा उद्धार पाएगी, यदि वह संयम सहित विश्वास, प्रेम, और पवित्रता में स्थिर रहे।

*2:5 2:5 परमेश्वर और मनुष्यों के बीच में भी एक ही बिचवई है: वह “परमेश्वर और मनुष्यों” के बीच मध्यस्थता करानेवाला हैं, जिसका अर्थ है, वह सम्पूर्ण मानवजाति के उद्धार की इच्छा करता है।

2:9 2:9 सुहावने: यहाँ पर इसका मतलब हैं, उनका ध्यान उनके पहरावे पर होना चाहिए कि यह किसी भी वर्ग के व्यक्तियों के लिए अपमान का कारण न हो, इस तरह की बातों से यह दिखता है कि उनका मन उच्च और महत्त्वपूर्ण बातों पर लगा है।