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इस्राएल के प्रति परमेश्वर का प्रेम 
  1 “जब इस्राएल बालक था, मैंने उससे प्रेम किया,  
और मिस्र देश से मैंने अपने पुत्र को बुलाया.   
 2 पर जितना ज्यादा उनको बुलाया गया,  
उतना ज्यादा वे मुझसे दूर होते गये.  
वे बाल देवताओं के लिये बलि चढ़ाते थे  
और उन्होंने मूर्तियों के आगे धूप जलाया है.   
 3 वह मैं ही था, जिसने एफ्राईम को  
हाथ पकड़कर चलना सिखाया;  
परंतु उन्होंने इस बात को न जाना  
कि वह मैं ही था, जिसने उन्हें चंगा किया.   
 4 मैंने मानवीय दया की डोरी,  
और प्रेम के बंधन से उनकी अगुवाई की.  
उनके लिये मैं वैसा था जैसे  
कोई छोटे बच्चे को गाल तक उठाता है,  
और मैं झुककर उन्हें खाना खिलाता था.   
 5 “क्या वे मिस्र देश नहीं लौटेंगे  
और अश्शूर का राजा उन पर शासन नहीं करेगा  
क्योंकि वे प्रायश्चित करना नहीं चाहते?   
 6 उनके शहरों में एक तलवार चमकेगी;  
वह उनके झूठे भविष्यवक्ताओं को मार डालेगी  
और उनकी योजनाओं का अंत कर देगी.   
 7 मेरे लोग मुझसे दूर जाने का ठान लिये हैं.  
यद्यपि वे मुझे सर्वोच्च परमेश्वर कहते हैं,  
मैं उनकी किसी भी प्रकार से प्रशंसा नहीं करूंगा.   
 8 “हे एफ्राईम, मैं तुम्हें कैसे छोड़ सकता हूं?  
हे इस्राएल, मैं तुम्हें किसी और को सौंप दूं?  
मैं तुम्हारे साथ अदमाह के जैसे व्यवहार कैसे कर सकता हूं?  
मैं तुम्हें ज़ेबोईम के समान कैसे बना सकता हूं?  
मेरा हृदय मेरे भीतर बदल गया है;  
मेरी सारी करुणा जागृत होती है.   
 9 मैं अपने भयंकर क्रोध के अनुसार नहीं करूंगा,  
न ही मैं एफ्राईम को फिर से नाश करूंगा.  
क्योंकि मैं परमेश्वर हूं, मनुष्य नहीं—  
तुम्हारे बीच एक पवित्र जन.  
मैं उनके शहरों के विरुद्ध नहीं आऊंगा.   
 10 वे याहवेह के पीछे चलेंगे;  
याहवेह एक-एक सिंह के समान गरजेंगे.  
जब वह गरजेंगे,  
तो उनकी संतान कांपती हुई पश्चिम दिशा से आएंगी.   
 11 वे मिस्र देश से,  
गौरेया पक्षी की तरह कांपती हुई,  
और अश्शूर देश से पंड़की की तरह पंख फड़फड़ाते हुए आएंगी.  
मैं उन्हें उनके घरों में बसाऊंगा,”  
याहवेह घोषणा करते हैं.   
इस्राएल का पाप 
  12 एफ्राईम ने मेरे चारों ओर झूठ का,  
और इस्राएल ने छल का ढेर लगा दिया है.  
और यहूदाह उद्दंडता से परमेश्वर के विरुद्ध है,  
और तो और वह विश्वासयोग्य पवित्र जन के विरुद्ध है.