भजन-संहिता 97
1 यहोवा ह सासन करथे, धरती ह खुस होवय;
दूरिहा-दूरिहा के समुंदर-तटमन आनंद मनावंय।
2 बादर अऊ गहिरा अंधियार ओकर चारों कोति हवय;
धरमीपन अऊ नियाय ओकर सिंघासन के नीव अंय।
3 आगी ह ओकर आघू-आघू जाथे
अऊ ओकर बईरीमन ला चारों कोति ले भसम कर देथे।
4 ओकर बिजली ह संसार ला अंजोर कर देथे;
धरती ह येला देखके कांपथे।
5 पहाड़मन यहोवा के आघू म
याने कि जम्मो धरती के परभू के आघू म मोम के सहीं टघल जाथें।
6 अकास ह ओकर धरमीपन के बखान करथे,
अऊ जम्मो मनखेमन ओकर महिमा ला देखथें।
7 ओ जम्मो, जऊन मन बेकार के देवतामन के अराधना करथें,
अऊ जऊन मन मूरतीमन ऊपर घमंड करथें, ओमन लज्जा म पड़थें;
हे जम्मो देवतामन, परमेसर के अराधना करव!
8 हे यहोवा, तोर नियाय के बात ला सुनके
सियोन ह आनंदित होथे
अऊ यहूदा के गांवमन खुस होथें।
9 काबरकि हे यहोवा, तेंह जम्मो धरती के ऊपर सर्वोच्च परमेसर अस;
तेंह जम्मो देवतामन ले बहुंत ऊपर उठाय गे हस।
10 जऊन मन यहोवा ले मया करथें, ओमन बुरई ले घिन करंय,
काबरकि ओह अपन बिसवासयोग्य जन के परान के रकछा करथे
अऊ ओमन ला दुस्टमन के हांथ ले बचाथे।
11 अंजोर ह धरमी ऊपर चमकथे
अऊ ईमानदार मनखे के हिरदय म आनंद रहिथे।
12 हे धरमी मनखेमन, यहोवा म आनंद मनावव,
अऊ ओकर पबितर नांव के परसंसा करव।