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अल्लाह के ख़ौफ़ और हिकमत की बरकत
मेरे बेटे, मेरी हिदायत मत भूलना। मेरे अहकाम तेरे दिल में महफ़ूज़ रहें। क्योंकि इन्हीं से तेरी ज़िंदगी के दिनों और सालों में इज़ाफ़ा होगा और तेरी ख़ुशहाली बढ़ेगी। शफ़क़त और वफ़ा तेरा दामन न छोड़ें। उन्हें अपने गले से बाँधना, अपने दिल की तख़्ती पर कंदा करना। तब तुझे अल्लाह और इनसान के सामने मेहरबानी और क़बूलियत हासिल होगी।
पूरे दिल से रब पर भरोसा रख, और अपनी अक़्ल पर तकिया न कर। जहाँ भी तू चले सिर्फ़ उसी को जान ले, फिर वह ख़ुद तेरी राहों को हमवार करेगा। अपने आपको दानिशमंद मत समझना बल्कि रब का ख़ौफ़ मानकर बुराई से दूर रह। इससे तेरा बदन सेहत पाएगा और तेरी हड्डियाँ तरो-ताज़ा हो जाएँगी। अपनी मिलकियत और अपनी तमाम पैदावार के पहले फल से रब का एहतराम कर, 10 फिर तेरे गोदाम अनाज से भर जाएंगे और तेरे बरतन मै से छलक उठेंगे।
11 मेरे बेटे, रब की तरबियत को रद्द न कर, जब वह तुझे डाँटे तो रंजीदा न हो। 12 क्योंकि जो रब को प्यारा है उस की वह तादीब करता है, जिस तरह बाप उस बेटे को तंबीह करता है जो उसे पसंद है।
हक़ीक़ी दौलत
13 मुबारक है वह जो हिकमत पाता है, जिसे समझ हासिल होती है। 14 क्योंकि हिकमत चाँदी से कहीं ज़्यादा सूदमंद है, और उससे सोने से कहीं ज़्यादा क़ीमती चीज़ें हासिल होती हैं। 15 हिकमत मोतियों से ज़्यादा नफ़ीस है, तेरे तमाम ख़ज़ाने उसका मुक़ाबला नहीं कर सकते। 16 उसके दहने हाथ में उम्र की दराज़ी और बाएँ हाथ में दौलत और इज़्ज़त है। 17 उस की राहें ख़ुशगवार, उसके तमाम रास्ते पुरअमन हैं। 18 जो उसका दामन पकड़ ले उसके लिए वह ज़िंदगी का दरख़्त है। मुबारक है वह जो उससे लिपटा रहे। 19 रब ने हिकमत के वसीले से ही ज़मीन की बुनियाद रखी, समझ के ज़रीए ही आसमान को मज़बूती से लगाया। 20 उसके इरफ़ान से ही गहराइयों का पानी फूट निकला और आसमान से शबनम टपककर ज़मीन पर पड़ती है।
21 मेरे बेटे, दानाई और तमीज़ अपने पास महफ़ूज़ रख और उन्हें अपनी नज़र से दूर न होने दे। 22 उनसे तेरी जान तरो-ताज़ा और तेरा गला आरास्ता रहेगा। 23 तब तू चलते वक़्त महफ़ूज़ रहेगा, और तेरा पाँव ठोकर नहीं खाएगा। 24 तू पाँव फैलाकर सो सकेगा, कोई सदमा तुझे नहीं पहुँचेगा बल्कि तू लेटकर गहरी नींद सोएगा। 25 नागहाँ आफ़त से मत डरना, न उस तबाही से जो बेदीन पर ग़ालिब आती है, 26 क्योंकि रब पर तेरा एतमाद है, वही तेरे पाँवों को फँस जाने से महफ़ूज़ रखेगा।
दूसरों की मदद करने की नसीहत
27 अगर कोई ज़रूरतमंद हो और तू उस की मदद कर सके तो उसके साथ भलाई करने से इनकार न कर। 28 अगर तू आज कुछ दे सके तो अपने पड़ोसी से मत कहना, “कल आना तो मैं आपको कुछ दे दूँगा।” 29 जो पड़ोसी बेफ़िकर तेरे साथ रहता है उसके ख़िलाफ़ बुरे मनसूबे मत बाँधना। 30 जिसने तुझे नुक़सान नहीं पहुँचाया अदालत में उस पर बेबुनियाद इलज़ाम न लगाना।
31 न ज़ालिम से हसद कर, न उस की कोई राह इख़्तियार कर। 32 क्योंकि बुरी राह पर चलनेवाले से रब घिन खाता है जबकि सीधी राह पर चलनेवालों को वह अपने राज़ों से आगाह करता है। 33 बेदीन के घर पर रब की लानत आती जबकि रास्तबाज़ के घर को वह बरकत देता है। 34 मज़ाक़ उड़ानेवालों का वह मज़ाक़ उड़ाता, लेकिन फ़रोतनों पर मेहरबानी करता है। 35 दानिशमंद मीरास में इज़्ज़त पाएँगे जबकि अहमक़ के नसीब में शरमिंदगी होगी।