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 1 ऐ ख़ुदावन्द! ऐ इन्तक़ाम लेने वाले  
ख़ुदा ऐ इन्तक़ाम लेने वाले ख़ुदा! जलवागर हो!   
 2 ऐ जहान का इन्साफ़ करने वाले! उठ;  
मग़रूरों को बदला दे!   
 3 ऐ ख़ुदावन्द, शरीर कब तक;  
शरीर कब तक ख़ुशी मनाया करेंगे?   
 4 वह बकवास करते और बड़ा बोल बोलत हैं,  
सब बदकिरदार लाफ़ज़नी करते हैं।   
 5 ऐ ख़ुदावन्द! वह तेरे लोगों को पीसे डालते हैं,  
और तेरी मीरास को दुख देते हैं।   
 6 वह बेवा और परदेसी को क़त्ल करते,  
और यतीम को मार डालते हैं;   
 7 और कहते है “ख़ुदावन्द नहीं देखेगा  
और या'क़ूब का ख़ुदा ख़याल नहीं करेगा।”   
 8 ऐ क़ौम के हैवानो! ज़रा ख़याल करो;  
ऐ बेवक़ूफ़ों! तुम्हें कब 'अक़्ल आएगी?   
 9 जिसने कान दिया, क्या वह ख़ुद नहीं सुनता?  
जिसने आँख बनाई, क्या वह देख नहीं सकता?   
 10 क्या वह जो क़ौमों को तम्बीह करता है,  
और इंसान को समझ सिखाता है, सज़ा न देगा?   
 11 ख़ुदावन्द इंसान के ख़यालों को जानता है, कि वह बेकार हैं।   
 12 ऐ ख़ुदावन्द, मुबारक है वह आदमी जिसे तू तम्बीह करता,  
और अपनी शरी'अत की ता'लीम देता है।   
 13 ताकि उसको मुसीबत के दिनों में आराम बख्शे,  
जब तक शरीर के लिए गढ़ा न खोदा जाए।   
 14 क्यूँकि ख़ुदावन्द अपने लोगों को नहीं छोड़ेगा,  
और वह अपनी मीरास को नहीं छोड़ेगा;   
 15 क्यूँकि 'अद्ल सदाक़त की तरफ़ रुजू' करेगा,  
और सब रास्त दिल उसकी पैरवी करेंगे।   
 16 शरीरों के मुक़ाबले में कौन मेरे लिए उठेगा?  
बदकिरदारों के ख़िलाफ़ कौन मेरे लिए खड़ा होगा?   
 17 अगर ख़ुदावन्द मेरा मददगार न होता,  
तो मेरी जान कब की 'आलम — ए — ख़ामोशी में जा बसी होती।   
 18 जब मैंने कहा, मेरा पाँव फिसल चला,  
तो ऐ ख़ुदावन्द! तेरी शफ़क़त ने मुझे संभाल लिया।   
 19 जब मेरे दिल में फ़िक्रों की कसरत होती है,  
तो तेरी तसल्ली मेरी जान को ख़ुश करती है।   
 20 क्या शरारत के तख़्त से तुझे कुछ वास्ता होगा,  
जो क़ानून की आड़ में बदी गढ़ता है?   
 21 वह सादिक़ की जान लेने को इकट्ठे होते हैं,  
और बेगुनाह पर क़त्ल का फ़तवा देते हैं।   
 22 लेकिन ख़ुदावन्द मेरा ऊँचा बुर्ज,  
और मेरा ख़ुदा मेरी पनाह की चट्टान रहा है।   
 23 वह उनकी बदकारी उन ही पर लाएगा,  
और उन ही की शरारत में उनको काट डालेगा।  
ख़ुदावन्द हमारा उनको काट डालेगा।