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 1 ख़ुदावन्द की हम्द करो ऐ मेरी जान,  
ख़ुदावन्द की हम्द कर!   
 2 मैं उम्र भर ख़ुदावन्द की हम्द करूँगा,  
जब तक मेरा वुजूद है मैं अपने ख़ुदा की मदहसराई करूँगा।   
 3 न उमरा पर भरोसा करो न आदमज़ाद पर,  
वह बचा नहीं सकता।   
 4 उसका दम निकल जाता है तो वह मिट्टी में मिल जाता है;  
उसी दिन उसके मन्सूबे फ़ना हो जाते हैं।   
 5 खु़श नसीब है वह, जिसका मददगार या'क़ूब का ख़ुदा है,  
और जिसकी उम्मीद ख़ुदावन्द उसके ख़ुदा से है।   
 6 जिसने आसमान और ज़मीन और समन्दर को,  
और जो कुछ उनमें है बनाया;  
जो सच्चाई को हमेशा क़ाईम रखता है।   
 7 जो मज़लूमों का इन्साफ़ करता है;  
जो भूकों को खाना देता है।  
ख़ुदावन्द कैदियों को आज़ाद करता है;   
 8 ख़ुदावन्द अन्धों की आँखें खोलता है;  
ख़ुदावन्द झुके हुए को उठा खड़ा करता है;  
ख़ुदावन्द सादिक़ों से मुहब्बत रखता है।   
 9 ख़ुदावन्द परदेसियों की हिफ़ाज़त करता है;  
वह यतीम और बेवा को संभालता है;  
लेकिन शरीरों की राह टेढ़ी कर देता है।   
 10 ख़ुदावन्द, हमेशा तक सल्तनत करेगा,  
ऐ सिय्यून! तेरा ख़ुदा नसल दर नसल।  
ख़ुदावन्द की हम्द करो!