भजन-संहिता 32
दाऊद के एक मसकील*संभवतः संगीत के एक सबद।
1 धइन अय ओ मनखे,
जेकर अपराध छेमा करे जाथे,
जेकर पाप तोपे जाथे।
2 धइन अय ओ मनखे,
जेकर पाप ला यहोवा ह ओकर बिरूध नइं गनय
अऊ जेकर आतमा म कोनो कपट के बात नइं ए।
3 जब मेंह कलेचुप रहंय,
त दिन भर कलहरत-कलहरत
मोर हाड़ामन बेकार होय लगिन।
4 काबरकि रात अऊ दिन
तोर हांथ ह मोर ऊपर भारी पड़िस;
अऊ जइसे घाम महिना के घाम म चीजमन सूखा जाथें
वइसे मोर बल ह कम हो गीस।
5 तब मेंह अपन पाप ला तोर आघू म मान लेंव
अऊ मोर अपराध ला नइं छुपांय।
मेंह कहेंव, “मेंह यहोवा के आघू म
अपन पाप ला मान लूहूं।”
अऊ तेंह मोर पाप के दोस ला
छेमा करय।
6 एकरसेति जम्मो बिसवासयोग्य मनखेमन तोर ले पराथना करंय
जब तेंह मिल सकत हस;
खचित संकट रूपी पानी के भयंकर लहरामन
ओमन करा नइं हबरहीं।
7 तेंह मोर छुपे के जगह अस;
तेंह मोला संकट ले बचाबे
अऊ छुटकारा के गीत म मोला घेर लेबे।
8 मेंह तोला निरदेस दूहूं अऊ ओ रसता के बात सिखाहूं, जेमा तोला जाना चाही;
मेंह तोर ऊपर अपन मया के नजर रखके तोला सलाह दूहूं।
9 तेंह घोड़ा अऊ खच्चर के सहीं झन बन,
जेमन करा कोनो समझ नइं रहय
पर ओमन ला काठी अऊ लगाम ले काबू म करे जाथे
नइं तो ओमन तुम्हर लकठा म नइं आवंय।
10 दुस्टमन के दुख-तकलीफ बहुंत हवय,
पर यहोवा के अब्बड़ मया ह
ओमन ला घेरे रहिथे, जऊन मन ओकर ऊपर भरोसा करथें।
11 हे धरमी मनखेमन, यहोवा म आनंद मनावव अऊ खुस रहव;
अऊ हे मन के जम्मो सीधवा मनखेमन, तुमन गीत गावव।