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 1 मैंने मुसीबत में ख़ुदावन्द से फ़रियाद की,  
और उसने मुझे जवाब दिया।   
 2 झूटे होंटों और दग़ाबाज़ ज़बान से,  
ऐ ख़ुदावन्द, मेरी जान को छुड़ा।   
 3 ऐ दग़ाबाज़ ज़बान, तुझे क्या दिया जाए?  
और तुझ से और क्या किया जाए?   
 4 ज़बरदस्त के तेज़ तीर,  
झाऊ के अंगारों के साथ।   
 5 मुझ पर अफ़सोस कि मैं मसक में बसता,  
और क़ीदार के ख़ैमों में रहता हूँ।   
 6 सुलह के दुश्मन के साथ रहते हुए,  
मुझे बड़ी मुद्दत हो गई।   
 7 मैं तो सुलह दोस्त हूँ।  
लेकिन जब बोलता हूँ तो वह जंग पर आमादा हो जाते हैं।